"माँ जन्म देती है गुरु जीवन देता है", टीचर्स डे पर भारत के प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने स्टूडेंट्स के साथ बातचीत में जब ये वाक्य कहा तो लगा कि शायद गुरु शिष्य की परम्परा को फिर से जीवन मिलने वाला है। अगर हमारे देश के प्रधान मंत्री टीचर्स की रिस्पेक्ट करने की बात कर रहे हैं तो जरूर मआशरे में भी यही सन्देश जायेगा और हम जो टीचर्स अपनी खोयी हुई इज़्ज़त के साथ भी अपनी ड्यूटी को पूरी शिद्दत के साथ निभाते जा रहे हैं, थोड़ी बहुत कद्र हमारी भी समाज में हो जाएगी।
ऐसा नही है कि आज हर कोई टीचर कम्युनिटी के अगेंस्ट है आज भी बहुत से बच्चे अपने टीचर को इज़्ज़त देते है गुरु की कही हर बात उनके लिए मायने रखती है। पर ज्यादा संख्या अब उनकी होती जा रही हे जो ये समझते है कि पहले सरकारी स्कूलों में पढ़ाई होती थी अब नही होती या अब टीचर्स को सैलरी तो ज्यादा मिलती है काम नही करते। जबकि तब भी टीचर अपनी जॉब को ईशवंदना की तरह ईमानदारी से करता था आज भी वह उसी ईमानदारी के साथ अपने काम को पूजा की तरह से कर रहे है।
पता नही क्यों सरकार खराब रिजल्ट आने पर टीचर्स पर सारा बलेम डाल कर अपने कर्तव्य की इतिश्री समझ लेती है। वही टीचर जो सारी जिंदगी बच्चों को शिक्षा देता रहा आज से कुछ ही साल पहले की बात है जब सरकारी स्कूल के पढ़े बच्चे अच्छे कॉलेज में एड्मिशन लेते थे डॉक्टर्स ,इंजीनियर्स और बड़ी बड़ी पोस्ट होल्डर्स होते थे फिर आज अचानक वही टीचर निष्कर्मण्य कैसे हो गया क्या वो पढ़ाना भूल गया या पढाई इतनी मुश्किल हो गयी की अब वो पढ़ा नही पा रहा आखिर ऐसा हो क्या गया।
आज जो पॉलिसीज लागू की गयी है वो बच्चों में पढाई को महत्व न देते हुए ये सोचने लगे है कि जब फेल तो हो नही सकते तो क्यों मेहनत करनी वो बच्चे जो कल तक फर्स्ट आने के लिए या १०० में से १०० नंबर पाने के लिए मेहनत करते थे वो अपने साथ E1 ग्रेड लाने वाले बच्चे को अगली क्लास में बैठे हुए देखता है तो पूछता है कि मैडम फिर हम क्यों मेहनत करते है ? अब क्या जवाब दे एक टीचर अपने उस बच्चे को कि वो मेहनत क्यों करे।
मिडिया जो अध्यापकों के विरोध में आने वाली हर न्यूज़ को तो ब्रेकिंग न्यूज़ बना कर बार बार दिखाती है वो तब कहाँ जाती है जब कोई बच्चा नक़ल न करने देने वाले टीचर को हथियार से मार देता है या काम न करने पर या बार बार काम मांगने वाले टीचर को बालों से पकड़ कर दिवार पर दे मारता है। मिडिया टीवी पर ये तो बार बार कहती है कि बच्चों के कौन से अधिकार है लेकिन कभी ये भी तो बता दो उन बच्चों को कि उनके कुछ फ़र्ज़ भी है।
आज तक याद हे जब पेरेंट्स आ कर कहते थे मैडम हमने बच्चा आपको सौंप दिया अब आप ही इसका सब कुछ है बड़ा फख्र होता था अपने टीचर होने पर आज कोई अगर ये कहे कि मुझे अध्यापक बनना हे तो मन करता है की कह दू "बेटा ये फटे का ढोल है न बजाए बने न फेंकते" मुस्कुरा कर रह जाती हूँ।
एक जोक याद आ रहा है जब ईश्वर हरेक से पूछते है की तुम्हे स्वर्ग में क्यों आने दिया जाए और टीचर कहता है मै एक अध्यापक हूँ बच्चों को पढ़ाने के साथ साथ अपने काम गिनवाना शुरू करता है लम्बी लिस्ट जो ख़त्म ही नही होती और ईश्वर कहतें है अंदर आ जा पागल अब रुलाएगा क्या। इतने सारे चार्जेज के साथ अपना सिलेबस टाइम पर खत्म करना और आह तक न भरना यही तो गुण है आज के टीचर के।
चलो शायद कभी हमारे भी दिन बदले और हमारे भारत में भी विदेश की तरह अध्यापकों को सम्मान पूर्ण स्थान मिलेगा इसी उम्मीद के साथ एक अध्यापिका ........... ।
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