Monday 23 November 2015

बच्चों की कोमल त्वचा के लिए कुछ नुस्ख़े!

घर मे नए मेहमान के आने की खबर मन को गुदगुदा जाती है। कल्पना मेँ बेबी के नाजुक से पैर, गुलाबी सी त्वचा, छोटी छोटी उँगलियाँ सब घूम जाता है तभी एक डर भी मन मे घर कर जाता है कि मैं अपने बच्चे की देखभाल कर भी पाऊँगी या नहीं। लेकिन जब मैं किसी को इस तरह की परेशानी मे देखती हूँ तो अपनी जिंदगी के कुछ अनुभव उनके साथ जरूर शेयर करती हूँ।

नन्हे बच्चे की मासूम गुलाबी स्किन की देखभाल सबसे ज्यादा जरूरी होती है तो सबसे पहले हमे उसके सोप, क्रीम, शैम्पू आदि पर ध्यान देना बहुत जरूरी है। ये सब चीज़ें केमिकल्स रहित हो तथा इनसे बच्चे को किसी भी तरह से एलर्जी न हो इस बात का विशेष ध्यान रखना जरूरी है। जिससे की यदि गलती से झाग बच्चे की आँख मे चली भी जाये तो बच्चो को जलन न हो।

बच्चे को नहलाने के लिए हमेशा गुनगुना पानी ही प्रयोग में लाना चाहिए। बच्चे को पानी के संपर्क में लाने से पहले ये भली प्रकार चैक कर ले कि पानी ना तो ज्यादा ठंडा हो ना ही ज्यादा गर्म। ज्यादा ठन्डे पानी से बच्चे को ठण्ड लगने का डर रहता है तथा ज्यादा गर्म पानी से जलने का खतरा भी हो सकता है तथा गर्म पानी से स्किन की नमी भी कम हो सकती है। 

बच्चो को नहलाने के बाद सदेव मुलायम तोलिये से पोंछना चाहिए क्योंकि बच्चों की स्किन बहुत नाज़ुक होती है। कड़े तोलिये का प्रयोग उनकी स्किन को नुकसान पहुंचा सकता है इसके लिए पहले थोड़ा प्रयोग किया हुआ टॉवल भी सॉफ्ट रहता है।

बच्चों को नहलाने के बाद बेबी लोशन या मॉइश्चराइसिंग क्रीम का प्रयोग करना चाहिए ताकि सर्दियों में बच्चा ड्राइनेस से बच सके तथा कम्फ़र्टेबल फील कर सके। यदि बच्चे को कोई क्रीम या लोशन सूट न करे तो बेबी आयल से भी मालिश की जा सकती है। उस समय थोड़ा सा बेबी पाउडर भी सॉफ्ट पार्ट्स पर जरूर डाल देना चाहिए।

बच्चों को सबसे ज्यादा इर्रिटेशन गीले रहने पर होती है। पुराने समय में जब डाइपर्स नहीं होते थे तब जेंट्स के पुराने कुर्ते में से बच्चों की नैप्पी बनाई जाती थी। लेकिन तब भी बच्चे थोड़े समय में ही उसे गीला कर देते थे और बार बार बदलना पड़ता था जिससे बच्चे साउंड स्लीप नही ले पाते थे इस वजह से बच्चे और माँ दोनों परेशान रहते थे। लेकिन अब पंपेर्स प्रीमियम केयर पैंटीज तथा अन्य कई कम्पनीज की डाइपर्स मार्किट में उपलब्ध है जिससे बच्चे सूखा फील करते हैं तथा आराम से पूरी नींद ले पाते है। ज्यादा देर के लिए बाहर जाने पर भी डाइपर्स का प्रयोग एक अच्छा ऑप्शन है इससे सभी कम्फर्टेबल फील करते है। एक बात यहाँ भी ध्यान देने वाली है की बच्चोँ के डाइपर्स टाइम टू टाइम बदलते रहना चाहिए ताकि बच्चों को नैप्पी रेशेस न हो जाये और वो हँसते मुस्कुराते रहें।



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एक पत्र बहू के नाम!

जब से बेटे की शादी हुई हर कोई जब भी मिलता यही पूछता और दादी कब बन रही हो मेरा जवाब यही होता कि  जब ईश्वर की मर्जी होगी तभी। और वो दिन आ ही गया जब मेरी बहु रानी ने मुझे फ़ोन करके ये खुशखबरी दी कि माँ आपकी दिली इच्छा ईश्वर ने पूरी कर दी हमारी बगिया में नया फ़ूल जुड़ने जा रहा है। मैंने भरे गले से बच्चों को बधाई दी ईश्वर का शुक्रिया किया व सबकी सुखी स्वस्थ व समृद्ध  जीवन की प्रार्थना की।


अब तो हर समय दिल में ख़ुशी के लड्डू फूट रहे थे लेकिन एक परेशानी भी मन में थी कि वर्किंग होते हुए मेरी बहु बच्चे को कैसे संभाल पायेगी उसकी ठीक से देखभाल कर भी पायेगी? लेकिन मन के किसी कोने से सदा यही आवाज़ आई की वो बहुत समझदार है मुझसे भी अच्छी तरह देखेगी वो, पर आप तो जानते हो सास तो सास है ऐसे कैसे अपनी बहु को कोई सीख न दे वो  तो सास कैसी हुई? बैठ गयी पेन और पेपर लेकर की बच्चों की त्वचा की देखभाल कैसे करे ये बताने।



प्रिय बिटिया

             सदा खुश रहो फलते फूलते रहो। बेटा मुझे तुम्हारी और बच्चे की बहुत फ़िक्र होती है। काश मै तुम्हारे साथ होती। पर क्योकि इस समय ये पॉसिबल नही लग रहा है सो सोचा कि तुम्हें कुछ खास बातें बता दूँ जिससे तुम्हे बच्चे की  देखभाल में दिक्कत न हो।


सबसे पहले ये बताना चाहती हूँ कि जब तुम्हारे पतिदेव का जन्म हुआ था तब डॉ ने दादी को शहद चटाने को मना किया पर उन्हें लग रहा था कि ये तो हमारे रिवाज़ है तुम्हारी बुआ ने तब समझाया था कि हमे बच्चे की हेल्थ सबसे पहले है। बच्चों को माँ का पहला दूध पिलाना बहुत जरूरी है। बच्चे को माँ का दूध अमृत है। ये बच्चों का इम्यून सिस्टम को इम्प्रूव करता है।



बेटा बच्चों की त्वचा बहुत कोमल होती है.उनकी स्किन को गीले होने से बचाना बहुत जरूरी है। उन्हें सूती कपड़े से या सॉफ्ट तौलिये से ही सदा पोंछना चाहिए।



बच्चों को बेबी सोप से ही नहलाना चाहिए। पर कभी कभी बच्चों की त्वचा बेबी सोप से भी एलर्जिक होती है उस हालात कोई दूसरा सॉफ्ट सोप यूज़ करना चाहिए।



बच्चों की मालिश बेबी आयल से जरूर करनी चाहिए इससे उनकी स्किन शाइन करती हे तथा सॉफ्ट होती है बच्चे भी मालिश करवाने में बहुत एन्जॉय करते है।



बच्चे बार बार नैप्पी गीली कर देते है सबसे ज्यादा बच्चे नैप्पी गीली होने पर रोते है। आजकल तो डायपर आते है जो बच्चों को काफी समय तक गीलेपन का एहसास नही होने देते व् उनकी त्वचा को भी सूखा रखते है कहीं बाहर जाते समय या रात को बच्चे को आराम की नींद लेने के लिए डायपर पहनाया जाये आजकल पंपेर्स प्रीमियम केयर पैंट्स काफी मददगार साबित हो रहे है।मेरी सहेली ने मुझे पंपेर्स प्रीमियम केयर पैंट्स के बारे में बताया है की ये काफी देर तक बच्चों को सूखा रखते हैं।



मैं ये जानती हूँ कि मेरी बेटी बहुत समझदार है और वो मुझसे ज्यादा बच्चे की केयर रखेगी। ईश्वर तुम्हे सदा खुश रखे व अच्छी सेहत बख्शे ताकि तुम अपनी व अपने परिवार की भली प्रकार देखभाल कर सको।


ढेरो प्यार के साथ तुम्हारी माँ!


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Wednesday 21 October 2015

अध्यापिका की ज़ुबानी...!

"माँ जन्म देती है गुरु जीवन देता है", टीचर्स डे पर भारत के प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने स्टूडेंट्स के साथ बातचीत में  जब ये वाक्य कहा तो लगा कि शायद गुरु शिष्य की परम्परा को फिर से जीवन मिलने वाला है। अगर हमारे देश के प्रधान मंत्री टीचर्स की रिस्पेक्ट करने की बात कर रहे हैं तो जरूर मआशरे में भी यही सन्देश जायेगा और हम जो टीचर्स अपनी खोयी हुई इज़्ज़त के साथ भी अपनी ड्यूटी को पूरी शिद्दत के साथ निभाते जा रहे हैं, थोड़ी बहुत कद्र हमारी भी समाज में हो जाएगी।

ऐसा नही है कि आज हर कोई टीचर कम्युनिटी के अगेंस्ट है आज भी बहुत से बच्चे अपने टीचर को इज़्ज़त देते है गुरु की कही हर बात उनके लिए मायने रखती है। पर ज्यादा संख्या अब उनकी होती जा रही हे जो ये समझते है कि पहले सरकारी स्कूलों में पढ़ाई होती थी अब नही होती या अब  टीचर्स को सैलरी तो ज्यादा मिलती है काम नही करते।   जबकि तब भी टीचर अपनी जॉब को ईशवंदना की तरह ईमानदारी से करता था आज भी वह उसी ईमानदारी के साथ अपने काम को पूजा की तरह से कर रहे है। 

पता नही क्यों सरकार खराब रिजल्ट आने पर टीचर्स पर सारा बलेम डाल कर अपने कर्तव्य की इतिश्री समझ लेती है। वही टीचर जो सारी जिंदगी बच्चों को शिक्षा देता रहा आज से कुछ ही साल पहले की बात है जब सरकारी स्कूल के पढ़े  बच्चे अच्छे कॉलेज में एड्मिशन लेते थे डॉक्टर्स ,इंजीनियर्स और बड़ी बड़ी पोस्ट होल्डर्स होते थे फिर आज अचानक वही टीचर निष्कर्मण्य कैसे हो गया क्या वो पढ़ाना भूल गया या पढाई इतनी मुश्किल हो गयी की अब वो पढ़ा नही पा रहा आखिर ऐसा हो क्या गया।

आज जो पॉलिसीज लागू की गयी है वो बच्चों में पढाई को महत्व न देते हुए ये सोचने लगे है कि जब फेल तो हो नही सकते तो क्यों मेहनत करनी वो बच्चे जो कल तक फर्स्ट आने के लिए या १०० में से १०० नंबर पाने के लिए मेहनत करते थे वो अपने साथ E1 ग्रेड लाने वाले बच्चे को अगली क्लास में बैठे हुए देखता है तो पूछता है कि मैडम फिर हम क्यों मेहनत करते है ? अब क्या जवाब दे एक टीचर अपने उस बच्चे को कि वो मेहनत क्यों  करे।

मिडिया जो अध्यापकों के विरोध में आने वाली हर न्यूज़ को तो ब्रेकिंग न्यूज़ बना कर बार बार दिखाती है वो तब कहाँ जाती है जब कोई बच्चा नक़ल न करने देने वाले टीचर को हथियार से मार देता है या काम न करने पर या  बार बार काम मांगने वाले टीचर को बालों से पकड़ कर दिवार पर दे मारता है। मिडिया टीवी पर ये तो बार बार कहती है कि बच्चों के कौन से अधिकार है लेकिन कभी ये भी तो बता दो उन बच्चों को कि  उनके कुछ फ़र्ज़ भी है।

आज तक याद हे जब पेरेंट्स आ कर कहते थे मैडम हमने बच्चा आपको सौंप दिया अब आप ही इसका सब कुछ है बड़ा फख्र होता था अपने टीचर होने पर आज कोई अगर ये कहे कि  मुझे अध्यापक बनना हे तो मन करता है की कह दू "बेटा ये फटे का ढोल है न बजाए बने न फेंकते" मुस्कुरा कर रह जाती हूँ।

एक जोक याद आ रहा है जब ईश्वर हरेक से पूछते है की तुम्हे स्वर्ग में क्यों आने दिया जाए और टीचर कहता है मै एक अध्यापक हूँ बच्चों को पढ़ाने के साथ साथ अपने काम गिनवाना शुरू करता है लम्बी लिस्ट जो ख़त्म ही नही होती और ईश्वर कहतें है अंदर आ जा पागल अब रुलाएगा क्या। इतने सारे चार्जेज के साथ अपना सिलेबस टाइम पर खत्म  करना और आह तक न भरना यही तो गुण है आज के टीचर के।

चलो शायद कभी हमारे भी दिन बदले और हमारे भारत में भी विदेश की तरह अध्यापकों को सम्मान पूर्ण स्थान मिलेगा इसी उम्मीद के साथ एक अध्यापिका ........... ।      

Tuesday 15 September 2015

देर आए दुरुस्त आए


जिंदगी मे हर उम्र पर अलग तरह की खुशियां अलग तरह की चिंताए और अलग ही जरूरतें होती है। आज जब आस पास स्कूल में सुनती हूँ की बच्चों की रिजल्ट आने वाले है माएं परेशान है कि क्या होगा ? क्या रिजल्ट आएगा कहाँ एड्मिशन होगा मै अपने बच्चों के रिजल्ट एवं एड्मिशन के दिनों में पहुँच जाती हूँ।  आज ये समझ आता है कि मैने अपने बच्चों को पढ़ाई एक हौवा जैसा बना कर रखा था। 

क्लास टेस्ट में पुरे नंबर क्यों नही आये ये दो नंबर कहाँ कट गए क्यों कट गए हमेशा इसी बात के लिए नाराज़ होती रही ,वो जो १८ नंबर आये कभी उसके लिए खुश नही हुई बच्चों का होसला नही बढ़ाया कि कोई नही अगली बार आ जायेंगे १८ नंबर भी तो बहुत बढ़िया है। जैसे जैसे बड़ी हो रही हूँ ये समझ आ रहा है की मेने न सिर्फ अपनी टेंशन पाल रखी थी बल्कि कहीं न कहीं बच्चों से उनका बचपन भी छीन ही लिया था।
ईश्वर की कृपा से दोनों बच्चे पढ़ाई में बहुत अच्छे थे आई० आई०  टी ० के आगे से निकलती तो सोचती मेरा बेटा बड़ा हो कर इंजीनियर बनेगा तो यहीं पढ़ेगा एम्स के आगे से निकलती तो सोचती की बेटी को डॉक्टर बनाऊँगी  तो वो यहां पढ़ेगी। असल में मैं  अपने बच्चो से अपनी जिंदगी की अधूरी इच्छाएं पूरी होने की उम्मीद करती थी।

वो सब तब गलत नही लगता था की क्या बच्चे ही तो माँ बाप की ख्वाहिशें पूरी करते हैं मैं कुछ  गलत थोड़ी सोच रही हूँ। सबसे खराब क्सपीरिएंस तो तब था जब बेटे का आई ० आई ० टी ० का रिजल्ट आना था और मै खुद ३ दिन तक सो नही पायी मुझे यही डर सता रहा था की अगर उसका आई ० आई ० टी ० में  एडमिशन नही हुआ तो क्या होगा? घबराहट व् टेंशन मे समझ ही नही आ रहा था कि अपना दर्द किससे कहूँ ? ईश्वर से हर घड़ी बस यही प्रार्थना कर रही थी की भगवान  इस बार बचा लो आगे जिंदगी में  अपने साथ साथ किसी की जिंदगी हराम नही करुँगी। आखिर वो दिन आया जब रिजल्ट डिक्लेअर होना था।  फ़ोन की घंटी बजती मेरा कलेजा मुँह को आ जाता कि न जाने क्या होगा फ़ोन की घंटी बजी और इन्होने कहा कि  हमारा बेटा सेलेक्ट हो गया। ऐसा लगा कि मुझे सब कुछ मिल गया। इतना रोयी कि घर में सब हैरान कि इतनी ख़ुशी की बात और मै थी कि  रोये ही जा रही थी सब मुबारक बाद दे रहे थे और मै अपने मन में ये प्रण कर रही थी कि ईश्वर मुझे इतनी बुद्धि देना की जो हुआ सो हुआ आगे से मैं अपने बच्चों को इस तरह से टेंशन न दूँ।

बस वो दिन है और आज का दिन मेने बच्चों की छोटी छोटी उपलब्धियों पर भी खुश होना सीख लिया है बिटिया को जो तू चाहती है वो कर यह कह कर खुद भी रिलैक्स रही और किसी को भी टेंशन नही दी। अब तो स्कूल में पेरेंट्स को भी यही समझाती हूँ की हर बच्चे में अलग विशेषता होती हे हर बच्चा कुछ न कुछ जरूर बनता है। 

हाँ ये सच है की ये सब सीखने के लिए मेने बहुत बड़ा एग्जाम दिया। सच ही तो है देर आए दुरुस्त आए।   

Thursday 10 September 2015

मालपुआ बनाने की विधि


आज शाम से बारिश हो रही थी सोचा बिटिया को कोई अच्छी चीज़ बना कर खुश कर दूँ। फिर सोचा कि क्या बनाया जाये तो याद आया माँ भी ऐसे मौसम में अक्सर मीठे मालपुए बनाया करती थीं। बस फटाफट सामान इकठ्ठा किया और बना लिए टेस्टी टेस्टी मीठे पूड़े। आइये आप भी बनाइये मालपुए माँ की रेसिपी से। 


सामग्री ;-१ कप आटा (गेंहू का)
              १ /२ कप चीनी
              १ से १ १/२ कप पानी
              १ चम्मच सौंफ
              रिफाइन्ड  तेल (नॉन स्टिक तवे पर तलने के लिए)    


विधि ;-एक पैन  में १ कप पानी में चीनी और सौंफ डाल कर गैस पर रख कर तब तक हिलाएं जब तक चीनी घुल जाये फिर उसे ठंडा होने रख दे।
एक बड़े कटोरे में आटा डाल कर थोड़ा थोड़ा चीनी का मिश्रण डालते हुए आटे को मिक्स करे। 


ये ध्यान रखे कि आटे में गिलटियां न पड़े। मिश्रण को मिलाते मिलाते स्मूथ सा पेस्ट बना ले। यह मिश्रण पकोड़ों के बेसन जितना स्मूथ होना चाहिए। 

इस मिश्रण को लगभग ५ मिनट तक फेंटे ताकि मालपुए सॉफ्ट बनें। 
एक फ्लैट तवे पर थोड़ा सा तेल डाल कर करछी से मिश्रण तवे पर डालें। 

माध्यम आंच पर सिकने दे चिमटे की सहायता से पलट कर दोनों तरफ से सुनहरा होने तक तलें। 

लीजिये तैयार है मालपुए। 

मालपुए को खीर या रबड़ी के साथ भी खाया जा सकता है। नही तो आम के आचार के साथ इन पुओं के मजे लीजिये। 

Friday 4 September 2015

आप मेरी माँ ही हैं ना

कभी कभी मसरूफ जिंदगी में कुछ ऐसा घट जाता है जो सोचने के मजबूर कर देता हे कि क्यों ईश्वर किसी को हर ख़ुशी से महरूम क्यों कर देता हे क्यों ये मासूम बच्चो से उनके माँ, बाप को दूर कर देता है।

एक टीचर की ड्यूटी निभाते हुए बहुत से बच्चों से मिली जिनके जीवन मे  ईश्वर से  कोई न कोई नाइंसाफी की हुई थी पर आज से बहुत साल पहले दूसरी कक्षा में पढ़ने वाली पिंकी प्रार्थना में गर्मी से बेहोश होकर गिर पड़ी उसे उठा कर मेडिकल रूम में ले गयी ग्लूकोस वगेरह दिया। फिर घर में फ़ोन कर दू ये सोच कर उठी ही थी पिंकी की आवाज़ से चोंक गयी कह रही थी मेम प्लीज मेरे घर फ़ोन नही करना मुझे घर नही जाना। मै हैरान रह गयी क्यों ? बस मुझे नही जाना घर, मैं  यही रहूंगी।  अच्छा, मै  उसे मेडिकल रूम में छोड़ कर क्लास में आ गयी। पर मन में यही सवाल घूम रहा था कि  क्यों पिंकी ने घर जाने को मना कर दिया। तभी राधा बोली मेम आपको पता हे की पिंकी घर से कुछ खा कर नही आती। उसकी मम्मी उसे कुछ खाने को नही देती की स्कूल  में मिड डे मील मिलेगा तो वही  खा लेना सारा काम करती है  घर का ऊपर से मारती भी है उसे। क्यों ? मेरे हैरान प्रश्न पर  सब ने हंस कर कहा कि उसकी अपनी मम्मी नही हैं ना .………

अगले दिन से पिंकी मेरे लिए स्पेशल स्टूडेंट हो गयी पढ़ाई में तो अच्छी थी ही वो मेरे थोड़े से प्यार और एक्स्ट्रा अटेंशन ने उसे और निखार दिया। हर कम्पटीशन में पार्ट लेना जीत कर आना और अपने सारे अवार्ड्स  मुझे दिखाने को बेताब पिंकी हर घड़ी मेरे आस-पास होती। उसकी उपस्थिति मुझे सुकून देती थी।       "आठवी के बाद नही पढ पाऊँगी क्योंकि माँ ने मना कर दिया है", ये शब्द मुझे अंदर तक चीर गए पूछ भी नही पायी कि  क्यों ? इतनी होशियार बच्ची इस तरह सौतेली माँ के दुर्व्यवहार के कारण पढ़ नही पायेगी लेकिन मै क्या करूँ नही सोच पा रही थी। पापा को बुला कर बात भी की पर नतीजा सिफर।

ईश्वर से दुआ करती कोई रास्ता दिखाओ मुझे। "पिंकी तुम्हारी मम्मी तुम्हे प्राइवेट पढ़ाई तो करने देंगी ना, मै तुम्हारी पूरी मदद करुँगी"। "पता नही" रुआंसी सी पिंकी बोली। १० वीं की पढ़ाई फिर १२ वीं के पेपर्स प्राइवेट दे कर पूरे जोन में प्रथम आने वाली पिंकी तब तक मेरे कॉन्टेक्ट में  थी हर कठिनाई मुझसे शेयर करने वाली पिंकी एक दिन आई और रोते  हुए बोली गॉव जा रही हूँ अब कभी नही मिल पाऊँगी। अरे  रोते  नही  अब तुम बड़ी हो गयी हो अब तुम्हे मेरे सहारे की जरूरत  नही है अपना रास्ता खुद तलाश करो।

इतने साल बाद न्यूज़ पेपर की हैडलाइन पर नजर टिक गयी यू० पी ० के छोटे से गॉव की पिंकी आई ० ए ० एस ० के एग्जाम में सेलेक्ट हुई थी। मेरी ख़ुशी का कोई ठिकाना नही था मेरे पैर जमीन पर नही पड़ रहे थे। पति को ये खुश खबरी सुनाने को फ़ोन उठाया ही था कि वह घन घन बज उठा। पिंकी थी "मेम मैंने आपका सपना पूरा कर दिया। मैंने शादी के बाद भी पढ़ाई नही छोड़ी। इसके लिए ही तो आपने  मेरी इतनी मदद की थी ना। मुझे अपनी माँ का सपना पूरा करना था। मैंने सबसे पहले अपनी माँ को बताने के लिए फ़ोन किया। आप मेरी माँ ही हैं ना। आप मेरी माँ ही हैं ना। "   ...........  और मैं ना जाने क्या सोच रही थी मेरा थोड़ा सा प्यार किसी बच्ची की जिंदगी को इस मुकाम पर ले आएगा।

सचमुच आज मुझे मेरे टीचर होने पर फक्र  हो रहा है। 

Wednesday 2 September 2015

औरंगजेब बनाम अब्दुल कलाम


आजकल न्यूज़ मे यह खबर बार बार आ रही थी की औरंगजेब रोड का नाम बदल कर भारत के पूर्व राष्ट्रपति  ए० पी० जे० अब्दुल कलाम रोड किया जाये ऐसी मांग उठ रही है। शुकवार को नई दिल्ली नगर निगम के उप सभापति श्री करन सिंह तंवर ने कहा कि सदन में औरंगज़ेब रोड का नाम बदल कर पूर्व राष्ट्रपति के नाम पर करने के लिए सभी ने सर्व सम्मति से प्रस्ताव पारित कर दिया। दिल्ली के मुख्य मंत्री भी एन० डी० एम ० सी०के सदस्य है इस मीटिंग में मौजूद थे। उन्होंने भी ट्वीट कर हर्ष व्यक्त किया।

औरंगज़ेब रोड का ही नाम क्यों चेंज करके उसे रीनेम किया  जाये इसके जवाब में अजीब अजीब वक्तव्य आये जिसमे किसी ने औरंगज़ेब को क्रूर शासक बताया इसलिए उसके नाम के बजाय उस रोड को अब्दुल कलाम नाम देना ठीक रहेगा।

१९११ से १९३१ के बीच जब नई दिल्ली की  रोड्स एवं पार्क्स को नाम देने के विषय में योजना बनाई तो दिल्ली की ऐतिहासिक सम्पदा को जीवित रखना चाहते थे सो उन्होंने कई लोदी ,तुगलक ,मुग़ल ,हिन्दू ,मंगोल,पठान व् राजपूत लगभग इतिहास के सभी वंशजों जिन्होंने ने भी दिल्ली के इतिहास में कोई योगदान दिया था उनके नाम पर नामकरण किया तो उन्होंने बिना पक्षपात के इंडिया गेट के चारों तरफ की रोड्स को पृथ्वीराज चौहान ,अशोक ,औरंगजेब, शाहजहाँ व् शेर शाह सूरी आदि के नाम पर नाम रखे।

डॉ ए० पी० जे० अब्दुल कलाम हमारे देश की ऐसी शख्सियत है कि उनके नाम पर किसी रोड किसी बिल्डिंग किसी पार्क का नाम रखा जाये तो किसी भी हिंदुस्तानी को एतराज नही होगा किन्तु यदि किसी रोड का नाम बदलने के बजाय किसी महत्वपूर्ण रोड का नामकरण उनके नाम पर किया जाता तो शायद श्रद्धांजलि देने का ये तरीका ज्यादा उपयुक्त रहता। मैं तो कहती हूँ की इस तरीके से तो ज्यादा बेहतर तरीका होता यदि हमारी सरकार देश के गरीब योग्य बच्चों को आगे पढ़ने के लिए कलाम साहेब के नाम पर स्कालरशिप देती। विज्ञानं विषय में  महत्वपूर्ण खोज करने के लिए बच्चों को प्रोत्साहित करती या फिर उस मिसाइल मैन को श्रद्धांजलि देने का एक तरीका ये भी हो सकता है कि हमारी अगली मिसाइल का नाम उनके नाम पर हो।

हर चीज पर राजनीतिक सियासत करने के बजाय यदि हमारे सियासतदान उन्हें सच्चे मन से याद करने के लिए कोई कोई स्कूल जहाँ  विज्ञानं की खोजों के लिए उत्तम लैब्स जो आधुनिक उपकरणों से लैस हो खोलें तथा वहाँ बच्चे अपनी योग्यता के आधार पर एडमिशन पा  सकें तो डॉ ० कलाम की आत्मा ज्यादा प्रसन्न होगी।

डॉ० कलाम हमारे देश के गौरव है,थे और रहेंगे ओ सियासतदानों उनके नाम पर राजनीति मत करो वो तो ऐसी शख्सियत थे जो राजनीति के गहरे कुए से भी बेदाग निकल कर आये थे।  

Monday 31 August 2015

शुक्रिया


आज स्कूल  से घर आकर टीवी चलाया तो ज़िंदगी चैनल पर शुक्रिया प्रोग्राम आ रहा था।  प्रोग्राम मे एक पोती अपने दादा और दादी का शुक्रिया करते हुए "फलेश-मॊब" एक्ट करती है। उसके अनुसार उसके दादा और दादी ने उसे जीवन में कभी किसी चीज़ की कमी नहीं होने दी इसलिए वो उनका शुक्रिया कर रही है।

मुझे उसी पल यह एहसास हुआ कि मुझे भी अपनी जिंदगी में इस मुकाम पर लाने वाले मेरे पति का मैंने कभी शुक्रिया नहीं किया। मैं  आज  याद करती हूँ ३२ साल पहले १९ वर्ष की उम्र में जब पढ़ाई करते-करते ही मम्मी -डैडी ने विवाह करके रुखसत कर दिया था, उस वक्त मेरा हाथ थामा मेरे पति ने। नया घर, नए लोग, सब कुछ नया  - ना अपने घर जैसा माहौल, ना खानपान - सब कुछ बदला बदला सा था।

ऐसे समय में इन्होने अपने परिवार के नियम-रिवाज़ सबसे मेरा परिचय करवाया। कभी यह एहसास ही नही होने दिया कि मैं इस घर में नई हूँ। मेरे परिवार को अपना परिवार मान कर हर काम हर अवसर पर मदद की। इन्होने कभी मुझे किसी चीज़ के लिए नही रोका बल्कि आगे बढ़ कर मेरी मदद की।  मेरी पढाई पूरी करवाई  बी० एड ० करवाया तथा मेरे जैसी अंतर्मुखी , सकुचाई सी लड़की को टीचर्स रिक्रूटमेंट एग्जाम दिलवा कर जॉब में लगवाया एवं आत्मनिर्भर बनाया। किस मौके पर हमें  किस तरह से पेश आना है, किसी मुश्किल परिस्थिति पर कैसे रिएक्ट करना है सब मैंने अपने पति से सीखा।

मेरे व्यक्तित्व का जो भी पहलु आज सबके सामने है, सब इनकी ही देन है। आपके हर सपोर्ट के लिए आपका  बहुत बहुत शुक्रिया खन्ना साहिब।                                                                                  

Friday 28 August 2015

वक़्त की कीमत


 सारा दिन बिस्तर पर बैठे रहो कुछ न करना हो सोच कर बड़ा मज़ा आता है ना । पर मेरा यकीन मानिये कि अगर आपको जबरदस्ती बेड पर बिठा दिया जाये कि आपको कुछ नही करना सिर्फ रेस्ट करना है ऐसा लगता है किसी ने सज़ा देदी है। बिल्कुल ऐसा आजकल मेरे साथ चल रहा है।

 दो दिन पहले क्लास लेने जाने की जल्दी में टेबल से पैर टकरा गया ऐसा लगा कि  पूरा स्टाफ रूम गोल गोल घूम गया उस समय तो क्लास की टेंशन में सीढियाँ चढ़ती हुई ऊपर चली भी गयी। बाद वाली भी सारी  क्लासेज लेकर घर आने तक ये एहसास तो था कि पैर में थोड़ा सा दर्द है पर घर आकर जब आराम करने को मिला तो लगा कि  दर्द नार्मल से थोड़ा ज्यादा है।  शाम तक तो पैर सूज भी गया और दर्द भी बढ़ गया तो समझ आ गया की कुछ गड़बड़ हो गयी। इनके ऑफिस से घर आने पर बताने पर जो कुछ डांट पड़ने वाली है उसके बारे में सोच कर ही डर लग रहा था। वही हुआ तुम देख कर क्यों नही चल सकती हर समय जल्दी तुम्हे ही क्यों होती होती है अब भुगतो थोड़ा ध्यान से काम कर लो तो क्या बिगड़ जाता हे तुम्हारा ……। सर झुकाये अपराधी बच्चे की तरह डाँट सुन रही थी। जब ये शांत हुए तो अब चलें डॉक्टर के पास पूछा तो ये गुस्से में गाड़ी की चाबी ले कर बाहर निकल गए।

एक्सरे से ऊँगली मै  हेयर लाइन फ्रैक्चर कन्फर्म हुआ तो डाक्टर साहेब ने कहा प्लास्टर नही हो सकता। बैंडेज बांध दी साथ ही हिदायत दी कि  ५ दिन टोटल बेडरेस्ट पैर को लटकाना नही है। बस साहेब जी वो छोटी सी मेरी बेटी जो पानी का गिलास भर कर भी खुद नही पी सकती थी एकदम मेरा रूप धारण करके "बैठ जाओ, उठना नही। आपके बिना भी सब काम हो सकता है,बस आराम करो" आदि आदि बोल कर काम पर लग गयी। मन एकदम भर आया कि हम यही सोचते रहते है कि हमारी परवाह किसे है पर यहां तो नज़ारा ही अलग था दोनों पापा और बेटी खाना बनाना पानी भरना दूध लाना सारे  काम ऐसे कर रहे थे कि कहीं मैं किसी काम के लिए उठ न जाऊँ।

थोड़ी देर तक तो अच्छा लगा फिर थोड़ा सा उठ कर कुछ करने की कोशिश पर दोनों का झिड़क देना बैठी रहो रहो सजा जैसा लगने लगा।  ऐसा लगा कितनी मजबूर हो गयी हूँ  मैं। सारा दिन बिस्तर पर बैठी बस यही सोच रही हूँ  कि  भाई हम तो काम करते हुए ही भले। ईश्वर अगली बार ये ध्यान रखना की मुझे बैठे रहने से बहुत नफरत है प्लीज मेरे लिए ये सजा न मुकर्रर की जाये। मैं तो दौड़ते भागते शोर मचाते जल्दी जल्दी करो "ये क्या है, वो क्या है" अपनी टैग लाइन्स के साथ जीना चाहती हूँ। 

Monday 24 August 2015

जिंदगी के फंडे


जो  कुछ  भी  हमारे  पास  हो  वो  सदा  कम ही लगता  हैं।   नंगे  पाॅव चलने वाला चप्पल की आस करता है , चप्पल जिसके पास है वो साइकिल होती तो मजे हो जाते , साइकिल पा जाने पर मोपेड या मोटर साइकिल की आस करने लगता है।  मोटर साइकिल मिलने पर कार की तमन्ना जोर पकड़ने  लगती है अर्थात मनुष्य हमेशा जो कुछ भी उसके पास है वो कम है दूसरे के पास ज्यादा है से ही दुःखी रहते  हैं ।

जिंदगी में अगर कुछ गलत हो सकता है तो वो जरूर होगा  यानि कहीं ये न हो जाये हमारे मन में जो विचार आ जाता है वही अक्सर होता है। 

मौन  रह कर अक्सर बडी बहस जीती जा सकती है। 

वाणी में  बड़ी शक्ति होती है कड़वा बोलने वाला अपना शहद  नही बेचपाता और मीठा बोलने वाला मिर्ची भी बेच जाता  है। 

संघर्ष व चुनौतियां इंसान को प्रखर एवं मजबूत बनाती है उसकी प्रतिभा को निखारती  है। 

ईश्वर ने कोई मुश्किल ऐसी नही बनाई जिसका हल न बनाया हो बिलकुल ऐसे जैसे कोई ताला  नही बनता चाबी के बिना।  

मुस्करा कर सारा जहाँ जीता जा सकता है ये वो मेकअप है जो बिना पैसे खर्च किये आपकी फेसवेल्यु बड़ा देती है।  

ईश्वर उनकी मदद करता है जो खुद अपनी मदद करना चाहते है। 

अपनी जरूरतों के लिए आवाज़ उठानी पड़ती है बिना रोये तो माँ भी दूध नही देती।  

जिंदगी एक फलसफा है दोस्तों गर समझ आ गया तो जीत वरना हार का सिलसिला है दोस्तों। 

Sunday 12 July 2015

बेसन के गट्टे (पंजाबी स्टाइल के)

बेसन के  गट्टे  (पंजाबी स्टाइल के)


सामग्री 
गट्टे  की सामग्री :-१ कटोरी बेसन
                           २ चम्मच दही
                           २ चम्मच रिफाइंड आयल
                           १ छोटा प्याज
                            अजवाइन ,मिर्च, नमक स्वादानुसार
करी की सामग्री ;-४-५ काली लहसुन
                           १ छोटा टुकड़ा अदरक
                           २ बड़े प्याज
                           २ बड़े  टमाटर
                          लाल मिर्च ,हल्दी ,धनिया पाउडर,जीरा, सूखी मेथी,गर्म मसाला  एवम नमक स्वादानुसार

विधि:- एक गहरी प्लेट में १ कटोरी बेसन ,२ बड़े चम्मच दही ,२ चम्मच रिफाइंड तेल थोड़ी सी लाल मिर्च चुटकी भर अजवाइन व नमक स्वादानुसार डाल लें। प्याज को महीन कद्दूकस करके इसमें मिला लें। इस मिक्सचर को टाइट आटे जैसा गूँथ लें।


गूंथे हुए बेसन की पतली पतली लम्बी डंडी की शेप में बेल लें। 

अब एक बर्तन में पानी उबलने रखें। जब पानी उबलने लगे तो उसमे बेसन की लम्बे गोल टुकड़े दाल कर ३-४ मिनट तक उबलने दें। 

जब बेसन का रंग बदल के हल्का हो जाये तो निकल लें फिर ठन्डे होने पर छोटे टुकड़ों में काट लें।


करी बनाने की विधि:- करी बनाने के लिए प्याज अदरक व् लहसुन का पेस्ट बना लें.कड़ाही में घी गर्म करके जीरा डालें ,जीरा चटकने पर इसमें प्याज ,अदरक  व् लहसुन का पेस्ट डाल कर भूनें। इसके भुनने के बाद इसमें टमाटर की  प्यूरी  डाल कर भूनें। फिर इसमें मिर्च ,हल्दी धनिया पाउडर व् नमक डाल कर २ मिनट तक भूनें कि  मसाला  घी छोड़  जाए।


फिर  इस मसाले में गट्टे डाल कर २ -३ मिनट तक भूने फिर इसमें पानी डालें  ( जितनी करी आप रखना चाहें ) उबाल आने तक रुकें फिर सब्जी को ढक कर धीमी आंच पर ५ मिनट तक पकाएं। अंत में सूखी मेथी डाल कर ढकें।

लीजिए तैयार है लज़ीज़ गट्टे की सब्जी। डोंगे में डाल कर ऊपर से हरा धनिया व् गर्म मसाला डाल कर लच्छेदार परांठे या तंदूर की रोटी के साथ परोसें। 

Wednesday 1 July 2015

आत्म-मंथन


शिक्षक प्रशिक्षण कार्यक्रम के दौरान प्रवक्ता ने जब सामने से शिक्षकों से प्रश्न किया कि आप मेँ से कितने टीचर्स बाई चॉयस बने हैं और कितने बाई चान्स बने हैं? उस समय तो सभी की तरह मैंने भी टीचर बाई चॉइस का ही मत दिया लेकिन मन में यह प्रश्न घूमता ही रहा कि क्या वाकई में मैं टीचर बाई चॉयस हूँ ?

बहुत विचार करने के बाद मेरे मन में यह सोच आई कि आखिर मैं अध्यापिका बनी ही क्योँ? क्या मैंने अपने जीवन का लक्ष्य अध्यापिका बनना रखा था? नहीँ मैंने तो कभी भी नहीं सोचा था कि टीचर बनूँगी क्यों कि कक्षा  में टीचर्स के लिए की गई विचित्र टिप्पणी मुझे सदैव दुःखी कर देती थी और मैं हमेशा ये सोचती थी की कोई टीचर कितनी भी मेहनत क्यों न कर ले, कितनी भी मधुरता सरलता से बच्चों को जीवन परक मूल्यों की प्रेरणा दे, कोई न कोई उसे पक्षपाती एवं गुस्सैल का तगमा जरूर दे देता है।  

शायद यही वज़ह थी कि मैं टीचर तो कभी नहीं बनना चाहती थ। अपनी स्नातक की डिग्री लेने के बाद यही सोचा कि बैंक की परीक्षा पास करके बैंक में नौकरी करुँगी और इस दिशा में कदम भी बढ़ाये, लेकिन जिंदगी की पेचीदगियों में परीक्षाये कई बार पास करने के बाद भी बैंकिंग में अपना कैरियर नहीं बना सकी। विवाह के आठ वर्ष बाद फिर सोचा कि कुछ न कुछ तो करना ही है इसलिए पत्राचार द्वारा बी.एड. करके शिक्षक भर्ती परीक्षा दी व निगम विद्यालय में अध्यापिका के पद पर नियुक्त हुई। 

शुरू शुरू में तो यही लगता रहा है कि मैं ये क्या कर रही हूँ ? अपने लक्षय से हट कर मै किस तरफ चल पड़ी, लेकिन जैसे जैसे मैं विद्यालय में बच्चों के बीच उनके मासूम चेहरों को देखती और उनकी भोली सी आँखों में अपने लिए सम्मान व् प्यार का मिला जुला रूप, उनके प्यारे से प्रश्न - यह सब मुझे उनसे जोड़ते चले गये।  और पता नहीं कब अपने मन, वचन और कर्म से अध्यापिका बन गई। 

आज उस प्रवक्ता के प्रश्न ने मुझे सोचने पे मजबूर कर दिया कि मैं अध्यापिका बाई चॉइस हूँ या बाई चांस।  ज़िन्दगी के २१ वर्ष अध्यापन कार्य करते हुए मैं यह भी भूल गई कि यह कार्य मेरा शौक था या मजबूरी। कल शायद मई यह कार्य ज़बरदस्ती करने के लिए निकली थी पर आज मैं अपने कार्य  के प्रति इस प्रकार समर्पित हो गई हूँ कि समाज में होने वाली हर घटना को अध्यापिका  की नज़र से ही देखती हूँ। मानो मैं जन्म-जात अध्यापिका के गुण ले कर ही आयी थी।