Tuesday, 15 September 2015

देर आए दुरुस्त आए


जिंदगी मे हर उम्र पर अलग तरह की खुशियां अलग तरह की चिंताए और अलग ही जरूरतें होती है। आज जब आस पास स्कूल में सुनती हूँ की बच्चों की रिजल्ट आने वाले है माएं परेशान है कि क्या होगा ? क्या रिजल्ट आएगा कहाँ एड्मिशन होगा मै अपने बच्चों के रिजल्ट एवं एड्मिशन के दिनों में पहुँच जाती हूँ।  आज ये समझ आता है कि मैने अपने बच्चों को पढ़ाई एक हौवा जैसा बना कर रखा था। 

क्लास टेस्ट में पुरे नंबर क्यों नही आये ये दो नंबर कहाँ कट गए क्यों कट गए हमेशा इसी बात के लिए नाराज़ होती रही ,वो जो १८ नंबर आये कभी उसके लिए खुश नही हुई बच्चों का होसला नही बढ़ाया कि कोई नही अगली बार आ जायेंगे १८ नंबर भी तो बहुत बढ़िया है। जैसे जैसे बड़ी हो रही हूँ ये समझ आ रहा है की मेने न सिर्फ अपनी टेंशन पाल रखी थी बल्कि कहीं न कहीं बच्चों से उनका बचपन भी छीन ही लिया था।
ईश्वर की कृपा से दोनों बच्चे पढ़ाई में बहुत अच्छे थे आई० आई०  टी ० के आगे से निकलती तो सोचती मेरा बेटा बड़ा हो कर इंजीनियर बनेगा तो यहीं पढ़ेगा एम्स के आगे से निकलती तो सोचती की बेटी को डॉक्टर बनाऊँगी  तो वो यहां पढ़ेगी। असल में मैं  अपने बच्चो से अपनी जिंदगी की अधूरी इच्छाएं पूरी होने की उम्मीद करती थी।

वो सब तब गलत नही लगता था की क्या बच्चे ही तो माँ बाप की ख्वाहिशें पूरी करते हैं मैं कुछ  गलत थोड़ी सोच रही हूँ। सबसे खराब क्सपीरिएंस तो तब था जब बेटे का आई ० आई ० टी ० का रिजल्ट आना था और मै खुद ३ दिन तक सो नही पायी मुझे यही डर सता रहा था की अगर उसका आई ० आई ० टी ० में  एडमिशन नही हुआ तो क्या होगा? घबराहट व् टेंशन मे समझ ही नही आ रहा था कि अपना दर्द किससे कहूँ ? ईश्वर से हर घड़ी बस यही प्रार्थना कर रही थी की भगवान  इस बार बचा लो आगे जिंदगी में  अपने साथ साथ किसी की जिंदगी हराम नही करुँगी। आखिर वो दिन आया जब रिजल्ट डिक्लेअर होना था।  फ़ोन की घंटी बजती मेरा कलेजा मुँह को आ जाता कि न जाने क्या होगा फ़ोन की घंटी बजी और इन्होने कहा कि  हमारा बेटा सेलेक्ट हो गया। ऐसा लगा कि मुझे सब कुछ मिल गया। इतना रोयी कि घर में सब हैरान कि इतनी ख़ुशी की बात और मै थी कि  रोये ही जा रही थी सब मुबारक बाद दे रहे थे और मै अपने मन में ये प्रण कर रही थी कि ईश्वर मुझे इतनी बुद्धि देना की जो हुआ सो हुआ आगे से मैं अपने बच्चों को इस तरह से टेंशन न दूँ।

बस वो दिन है और आज का दिन मेने बच्चों की छोटी छोटी उपलब्धियों पर भी खुश होना सीख लिया है बिटिया को जो तू चाहती है वो कर यह कह कर खुद भी रिलैक्स रही और किसी को भी टेंशन नही दी। अब तो स्कूल में पेरेंट्स को भी यही समझाती हूँ की हर बच्चे में अलग विशेषता होती हे हर बच्चा कुछ न कुछ जरूर बनता है। 

हाँ ये सच है की ये सब सीखने के लिए मेने बहुत बड़ा एग्जाम दिया। सच ही तो है देर आए दुरुस्त आए।   

Thursday, 10 September 2015

मालपुआ बनाने की विधि


आज शाम से बारिश हो रही थी सोचा बिटिया को कोई अच्छी चीज़ बना कर खुश कर दूँ। फिर सोचा कि क्या बनाया जाये तो याद आया माँ भी ऐसे मौसम में अक्सर मीठे मालपुए बनाया करती थीं। बस फटाफट सामान इकठ्ठा किया और बना लिए टेस्टी टेस्टी मीठे पूड़े। आइये आप भी बनाइये मालपुए माँ की रेसिपी से। 


सामग्री ;-१ कप आटा (गेंहू का)
              १ /२ कप चीनी
              १ से १ १/२ कप पानी
              १ चम्मच सौंफ
              रिफाइन्ड  तेल (नॉन स्टिक तवे पर तलने के लिए)    


विधि ;-एक पैन  में १ कप पानी में चीनी और सौंफ डाल कर गैस पर रख कर तब तक हिलाएं जब तक चीनी घुल जाये फिर उसे ठंडा होने रख दे।
एक बड़े कटोरे में आटा डाल कर थोड़ा थोड़ा चीनी का मिश्रण डालते हुए आटे को मिक्स करे। 


ये ध्यान रखे कि आटे में गिलटियां न पड़े। मिश्रण को मिलाते मिलाते स्मूथ सा पेस्ट बना ले। यह मिश्रण पकोड़ों के बेसन जितना स्मूथ होना चाहिए। 

इस मिश्रण को लगभग ५ मिनट तक फेंटे ताकि मालपुए सॉफ्ट बनें। 
एक फ्लैट तवे पर थोड़ा सा तेल डाल कर करछी से मिश्रण तवे पर डालें। 

माध्यम आंच पर सिकने दे चिमटे की सहायता से पलट कर दोनों तरफ से सुनहरा होने तक तलें। 

लीजिये तैयार है मालपुए। 

मालपुए को खीर या रबड़ी के साथ भी खाया जा सकता है। नही तो आम के आचार के साथ इन पुओं के मजे लीजिये। 

Friday, 4 September 2015

आप मेरी माँ ही हैं ना

कभी कभी मसरूफ जिंदगी में कुछ ऐसा घट जाता है जो सोचने के मजबूर कर देता हे कि क्यों ईश्वर किसी को हर ख़ुशी से महरूम क्यों कर देता हे क्यों ये मासूम बच्चो से उनके माँ, बाप को दूर कर देता है।

एक टीचर की ड्यूटी निभाते हुए बहुत से बच्चों से मिली जिनके जीवन मे  ईश्वर से  कोई न कोई नाइंसाफी की हुई थी पर आज से बहुत साल पहले दूसरी कक्षा में पढ़ने वाली पिंकी प्रार्थना में गर्मी से बेहोश होकर गिर पड़ी उसे उठा कर मेडिकल रूम में ले गयी ग्लूकोस वगेरह दिया। फिर घर में फ़ोन कर दू ये सोच कर उठी ही थी पिंकी की आवाज़ से चोंक गयी कह रही थी मेम प्लीज मेरे घर फ़ोन नही करना मुझे घर नही जाना। मै हैरान रह गयी क्यों ? बस मुझे नही जाना घर, मैं  यही रहूंगी।  अच्छा, मै  उसे मेडिकल रूम में छोड़ कर क्लास में आ गयी। पर मन में यही सवाल घूम रहा था कि  क्यों पिंकी ने घर जाने को मना कर दिया। तभी राधा बोली मेम आपको पता हे की पिंकी घर से कुछ खा कर नही आती। उसकी मम्मी उसे कुछ खाने को नही देती की स्कूल  में मिड डे मील मिलेगा तो वही  खा लेना सारा काम करती है  घर का ऊपर से मारती भी है उसे। क्यों ? मेरे हैरान प्रश्न पर  सब ने हंस कर कहा कि उसकी अपनी मम्मी नही हैं ना .………

अगले दिन से पिंकी मेरे लिए स्पेशल स्टूडेंट हो गयी पढ़ाई में तो अच्छी थी ही वो मेरे थोड़े से प्यार और एक्स्ट्रा अटेंशन ने उसे और निखार दिया। हर कम्पटीशन में पार्ट लेना जीत कर आना और अपने सारे अवार्ड्स  मुझे दिखाने को बेताब पिंकी हर घड़ी मेरे आस-पास होती। उसकी उपस्थिति मुझे सुकून देती थी।       "आठवी के बाद नही पढ पाऊँगी क्योंकि माँ ने मना कर दिया है", ये शब्द मुझे अंदर तक चीर गए पूछ भी नही पायी कि  क्यों ? इतनी होशियार बच्ची इस तरह सौतेली माँ के दुर्व्यवहार के कारण पढ़ नही पायेगी लेकिन मै क्या करूँ नही सोच पा रही थी। पापा को बुला कर बात भी की पर नतीजा सिफर।

ईश्वर से दुआ करती कोई रास्ता दिखाओ मुझे। "पिंकी तुम्हारी मम्मी तुम्हे प्राइवेट पढ़ाई तो करने देंगी ना, मै तुम्हारी पूरी मदद करुँगी"। "पता नही" रुआंसी सी पिंकी बोली। १० वीं की पढ़ाई फिर १२ वीं के पेपर्स प्राइवेट दे कर पूरे जोन में प्रथम आने वाली पिंकी तब तक मेरे कॉन्टेक्ट में  थी हर कठिनाई मुझसे शेयर करने वाली पिंकी एक दिन आई और रोते  हुए बोली गॉव जा रही हूँ अब कभी नही मिल पाऊँगी। अरे  रोते  नही  अब तुम बड़ी हो गयी हो अब तुम्हे मेरे सहारे की जरूरत  नही है अपना रास्ता खुद तलाश करो।

इतने साल बाद न्यूज़ पेपर की हैडलाइन पर नजर टिक गयी यू० पी ० के छोटे से गॉव की पिंकी आई ० ए ० एस ० के एग्जाम में सेलेक्ट हुई थी। मेरी ख़ुशी का कोई ठिकाना नही था मेरे पैर जमीन पर नही पड़ रहे थे। पति को ये खुश खबरी सुनाने को फ़ोन उठाया ही था कि वह घन घन बज उठा। पिंकी थी "मेम मैंने आपका सपना पूरा कर दिया। मैंने शादी के बाद भी पढ़ाई नही छोड़ी। इसके लिए ही तो आपने  मेरी इतनी मदद की थी ना। मुझे अपनी माँ का सपना पूरा करना था। मैंने सबसे पहले अपनी माँ को बताने के लिए फ़ोन किया। आप मेरी माँ ही हैं ना। आप मेरी माँ ही हैं ना। "   ...........  और मैं ना जाने क्या सोच रही थी मेरा थोड़ा सा प्यार किसी बच्ची की जिंदगी को इस मुकाम पर ले आएगा।

सचमुच आज मुझे मेरे टीचर होने पर फक्र  हो रहा है। 

Wednesday, 2 September 2015

औरंगजेब बनाम अब्दुल कलाम


आजकल न्यूज़ मे यह खबर बार बार आ रही थी की औरंगजेब रोड का नाम बदल कर भारत के पूर्व राष्ट्रपति  ए० पी० जे० अब्दुल कलाम रोड किया जाये ऐसी मांग उठ रही है। शुकवार को नई दिल्ली नगर निगम के उप सभापति श्री करन सिंह तंवर ने कहा कि सदन में औरंगज़ेब रोड का नाम बदल कर पूर्व राष्ट्रपति के नाम पर करने के लिए सभी ने सर्व सम्मति से प्रस्ताव पारित कर दिया। दिल्ली के मुख्य मंत्री भी एन० डी० एम ० सी०के सदस्य है इस मीटिंग में मौजूद थे। उन्होंने भी ट्वीट कर हर्ष व्यक्त किया।

औरंगज़ेब रोड का ही नाम क्यों चेंज करके उसे रीनेम किया  जाये इसके जवाब में अजीब अजीब वक्तव्य आये जिसमे किसी ने औरंगज़ेब को क्रूर शासक बताया इसलिए उसके नाम के बजाय उस रोड को अब्दुल कलाम नाम देना ठीक रहेगा।

१९११ से १९३१ के बीच जब नई दिल्ली की  रोड्स एवं पार्क्स को नाम देने के विषय में योजना बनाई तो दिल्ली की ऐतिहासिक सम्पदा को जीवित रखना चाहते थे सो उन्होंने कई लोदी ,तुगलक ,मुग़ल ,हिन्दू ,मंगोल,पठान व् राजपूत लगभग इतिहास के सभी वंशजों जिन्होंने ने भी दिल्ली के इतिहास में कोई योगदान दिया था उनके नाम पर नामकरण किया तो उन्होंने बिना पक्षपात के इंडिया गेट के चारों तरफ की रोड्स को पृथ्वीराज चौहान ,अशोक ,औरंगजेब, शाहजहाँ व् शेर शाह सूरी आदि के नाम पर नाम रखे।

डॉ ए० पी० जे० अब्दुल कलाम हमारे देश की ऐसी शख्सियत है कि उनके नाम पर किसी रोड किसी बिल्डिंग किसी पार्क का नाम रखा जाये तो किसी भी हिंदुस्तानी को एतराज नही होगा किन्तु यदि किसी रोड का नाम बदलने के बजाय किसी महत्वपूर्ण रोड का नामकरण उनके नाम पर किया जाता तो शायद श्रद्धांजलि देने का ये तरीका ज्यादा उपयुक्त रहता। मैं तो कहती हूँ की इस तरीके से तो ज्यादा बेहतर तरीका होता यदि हमारी सरकार देश के गरीब योग्य बच्चों को आगे पढ़ने के लिए कलाम साहेब के नाम पर स्कालरशिप देती। विज्ञानं विषय में  महत्वपूर्ण खोज करने के लिए बच्चों को प्रोत्साहित करती या फिर उस मिसाइल मैन को श्रद्धांजलि देने का एक तरीका ये भी हो सकता है कि हमारी अगली मिसाइल का नाम उनके नाम पर हो।

हर चीज पर राजनीतिक सियासत करने के बजाय यदि हमारे सियासतदान उन्हें सच्चे मन से याद करने के लिए कोई कोई स्कूल जहाँ  विज्ञानं की खोजों के लिए उत्तम लैब्स जो आधुनिक उपकरणों से लैस हो खोलें तथा वहाँ बच्चे अपनी योग्यता के आधार पर एडमिशन पा  सकें तो डॉ ० कलाम की आत्मा ज्यादा प्रसन्न होगी।

डॉ० कलाम हमारे देश के गौरव है,थे और रहेंगे ओ सियासतदानों उनके नाम पर राजनीति मत करो वो तो ऐसी शख्सियत थे जो राजनीति के गहरे कुए से भी बेदाग निकल कर आये थे।