Friday, 4 September 2015

आप मेरी माँ ही हैं ना

कभी कभी मसरूफ जिंदगी में कुछ ऐसा घट जाता है जो सोचने के मजबूर कर देता हे कि क्यों ईश्वर किसी को हर ख़ुशी से महरूम क्यों कर देता हे क्यों ये मासूम बच्चो से उनके माँ, बाप को दूर कर देता है।

एक टीचर की ड्यूटी निभाते हुए बहुत से बच्चों से मिली जिनके जीवन मे  ईश्वर से  कोई न कोई नाइंसाफी की हुई थी पर आज से बहुत साल पहले दूसरी कक्षा में पढ़ने वाली पिंकी प्रार्थना में गर्मी से बेहोश होकर गिर पड़ी उसे उठा कर मेडिकल रूम में ले गयी ग्लूकोस वगेरह दिया। फिर घर में फ़ोन कर दू ये सोच कर उठी ही थी पिंकी की आवाज़ से चोंक गयी कह रही थी मेम प्लीज मेरे घर फ़ोन नही करना मुझे घर नही जाना। मै हैरान रह गयी क्यों ? बस मुझे नही जाना घर, मैं  यही रहूंगी।  अच्छा, मै  उसे मेडिकल रूम में छोड़ कर क्लास में आ गयी। पर मन में यही सवाल घूम रहा था कि  क्यों पिंकी ने घर जाने को मना कर दिया। तभी राधा बोली मेम आपको पता हे की पिंकी घर से कुछ खा कर नही आती। उसकी मम्मी उसे कुछ खाने को नही देती की स्कूल  में मिड डे मील मिलेगा तो वही  खा लेना सारा काम करती है  घर का ऊपर से मारती भी है उसे। क्यों ? मेरे हैरान प्रश्न पर  सब ने हंस कर कहा कि उसकी अपनी मम्मी नही हैं ना .………

अगले दिन से पिंकी मेरे लिए स्पेशल स्टूडेंट हो गयी पढ़ाई में तो अच्छी थी ही वो मेरे थोड़े से प्यार और एक्स्ट्रा अटेंशन ने उसे और निखार दिया। हर कम्पटीशन में पार्ट लेना जीत कर आना और अपने सारे अवार्ड्स  मुझे दिखाने को बेताब पिंकी हर घड़ी मेरे आस-पास होती। उसकी उपस्थिति मुझे सुकून देती थी।       "आठवी के बाद नही पढ पाऊँगी क्योंकि माँ ने मना कर दिया है", ये शब्द मुझे अंदर तक चीर गए पूछ भी नही पायी कि  क्यों ? इतनी होशियार बच्ची इस तरह सौतेली माँ के दुर्व्यवहार के कारण पढ़ नही पायेगी लेकिन मै क्या करूँ नही सोच पा रही थी। पापा को बुला कर बात भी की पर नतीजा सिफर।

ईश्वर से दुआ करती कोई रास्ता दिखाओ मुझे। "पिंकी तुम्हारी मम्मी तुम्हे प्राइवेट पढ़ाई तो करने देंगी ना, मै तुम्हारी पूरी मदद करुँगी"। "पता नही" रुआंसी सी पिंकी बोली। १० वीं की पढ़ाई फिर १२ वीं के पेपर्स प्राइवेट दे कर पूरे जोन में प्रथम आने वाली पिंकी तब तक मेरे कॉन्टेक्ट में  थी हर कठिनाई मुझसे शेयर करने वाली पिंकी एक दिन आई और रोते  हुए बोली गॉव जा रही हूँ अब कभी नही मिल पाऊँगी। अरे  रोते  नही  अब तुम बड़ी हो गयी हो अब तुम्हे मेरे सहारे की जरूरत  नही है अपना रास्ता खुद तलाश करो।

इतने साल बाद न्यूज़ पेपर की हैडलाइन पर नजर टिक गयी यू० पी ० के छोटे से गॉव की पिंकी आई ० ए ० एस ० के एग्जाम में सेलेक्ट हुई थी। मेरी ख़ुशी का कोई ठिकाना नही था मेरे पैर जमीन पर नही पड़ रहे थे। पति को ये खुश खबरी सुनाने को फ़ोन उठाया ही था कि वह घन घन बज उठा। पिंकी थी "मेम मैंने आपका सपना पूरा कर दिया। मैंने शादी के बाद भी पढ़ाई नही छोड़ी। इसके लिए ही तो आपने  मेरी इतनी मदद की थी ना। मुझे अपनी माँ का सपना पूरा करना था। मैंने सबसे पहले अपनी माँ को बताने के लिए फ़ोन किया। आप मेरी माँ ही हैं ना। आप मेरी माँ ही हैं ना। "   ...........  और मैं ना जाने क्या सोच रही थी मेरा थोड़ा सा प्यार किसी बच्ची की जिंदगी को इस मुकाम पर ले आएगा।

सचमुच आज मुझे मेरे टीचर होने पर फक्र  हो रहा है। 

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