आज स्कूल से घर आकर टीवी चलाया तो ज़िंदगी चैनल पर शुक्रिया प्रोग्राम आ रहा था। प्रोग्राम मे एक पोती अपने दादा और दादी का शुक्रिया करते हुए "फलेश-मॊब" एक्ट करती है। उसके अनुसार उसके दादा और दादी ने उसे जीवन में कभी किसी चीज़ की कमी नहीं होने दी इसलिए वो उनका शुक्रिया कर रही है।
मुझे उसी पल यह एहसास हुआ कि मुझे भी अपनी जिंदगी में इस मुकाम पर लाने वाले मेरे पति का मैंने कभी शुक्रिया नहीं किया। मैं आज याद करती हूँ ३२ साल पहले १९ वर्ष की उम्र में जब पढ़ाई करते-करते ही मम्मी -डैडी ने विवाह करके रुखसत कर दिया था, उस वक्त मेरा हाथ थामा मेरे पति ने। नया घर, नए लोग, सब कुछ नया - ना अपने घर जैसा माहौल, ना खानपान - सब कुछ बदला बदला सा था।
ऐसे समय में इन्होने अपने परिवार के नियम-रिवाज़ सबसे मेरा परिचय करवाया। कभी यह एहसास ही नही होने दिया कि मैं इस घर में नई हूँ। मेरे परिवार को अपना परिवार मान कर हर काम हर अवसर पर मदद की। इन्होने कभी मुझे किसी चीज़ के लिए नही रोका बल्कि आगे बढ़ कर मेरी मदद की। मेरी पढाई पूरी करवाई बी० एड ० करवाया तथा मेरे जैसी अंतर्मुखी , सकुचाई सी लड़की को टीचर्स रिक्रूटमेंट एग्जाम दिलवा कर जॉब में लगवाया एवं आत्मनिर्भर बनाया। किस मौके पर हमें किस तरह से पेश आना है, किसी मुश्किल परिस्थिति पर कैसे रिएक्ट करना है सब मैंने अपने पति से सीखा।
मेरे व्यक्तित्व का जो भी पहलु आज सबके सामने है, सब इनकी ही देन है। आपके हर सपोर्ट के लिए आपका बहुत बहुत शुक्रिया खन्ना साहिब।
Uttam ati urtam
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