Wednesday, 2 March 2016

सुजाता की कहानी

आज 'नो एग्जामिनेशन डे' था - बच्चे तो थे नहीं, सो हम सब स्टाफ रूम में बैठे इधर उधर की गप्पें मार रहे थे। बातें बजट से शुरू हुई कि बजट मे क्या अच्छा लगा और क्या पसंद नही आया। फिर टीवी, बॉलीवुड से होती हुई और परिवार पर जा पहुँची। "मैडम आप इतनी सुबह क्यों उठ जाते हो" इधर से एक ने पूछा, जब तक वो जवाब देतीं तब तक दूसरी मैडम बोल उठी "बेचारी सारा काम खुद जो करती हैं।" "मतलब?", हैरानी से पूछा सुजाता ने जो अभी अभी स्टाफ रूम में दाखिल हुई थी। "अरे इनकी किस्मत तुम्हारे जैसी थोड़ी है जो घर के कामों में कोई हाथ बंटा दे ,घर के सारे काम ये खुद करती हैं।" "वो तो सभी करते हैं, इसमें क्या बड़ी बात है?" इन सारी बातों के बीच सुजाता ने कहा कि "आपको क्या लगता है कि मेरे लिए ये सब इतना आसान रहा होगा कि पुराने विचारों वाले परिवार में अपनी जगह बनाना और पति से काम में मदद करवा लेना वो भी संयुक्त परिवार में, फिर ??"

सुजाता ने जो आप बीती सुनाई वो मैं आप सबको उसी की जुबानी सुना रही हूँ।

        "जब  मेरी सगाई इनसे हुई तो मै बहुत खुश थी। सुन्दर, स्मार्ट, अच्छी नौकरी, अच्छी तनख्वाह, छोटा सा परिवार, पढ़े लिखे सास ससुर और क्या चाहिए किसी को भी। बस मेरे सपने हकीकत में बदल रहे थे। शुरू शुरू में तो सब कुछ बहुत बढ़िया था, लेकिन उस दिन मेरे पैरों के नीचे से जमीं ही खिसकगयी जब सासु माँ ने कहा कि "बेटा थोड़ा घर का भी ध्यान देना शुरू करो। तुम्हारी छुट्टियाँ भी ख़त्म होने को हैं, हम भी कब तक तुम्हारा ध्यान रख सकते हैं। अपना काम खुद करना शुरू करो।" "हाँ जी" कह कर मै अपने कमरे में आ गयी।

         जब मेरे स्कूल शुरू हुये तो मेरी मुश्किलें शुरू हो गयी। सुबह कपडे धो कर फैलाने का टाइम नहीं, खाना बन गया तो पैक नही कर पायी। कभी हस्बैंड से कहा की प्लीज हेल्प कर दिया करो तो उनका कहना कि "मम्मी पापा क्या कहेंगे कि बीवी की मदद कर रहा हूँ।" "तो?" वो बिना कोई जवाब दिए निकल जाते। मै उसी तरह अनाड़ी की तरह एक काम सही करती तो दूसरा बिगाड़ देती। सब कुछ बदल रहा था, घर का माहौल भी रिश्ते भी। मैं कुछ नही कर पा रही थी। एकाध बार माँ से जिक्र किया तो माँ ने भी यही जवाब दिया कि घर का काम तो औरत को ही करना होता है।

      सब के बीच मै कहीं टूट रही थी घर मुझसे सम्हाल नही रहा था। स्कूल का काम टाइम से पूरा नही हो रहा था और मै डिप्रेशंन में आती जा रही थी। डॉ. से मिलकर प्रॉब्लम डिसकस की तो डॉ ने इनसे पूछा क्या घर में सब ठीक है? "हम्म ठीक ही है, बस मैडम ही अपसेट हैं।" "सुजाता मुझे बताओ कि तुम्हें क्या परेशानी है?" "कुछ नही। जब मैं सब ठीक करने की कोशिश करती हूँ तो बाकी सब गड़बड़ हो जाता है। मै कुछ भी सही नही कर पाती।"

   डॉ. ने मेरे पति से कहा की जब ये काम करने में घबरा जाती है तो आप क्या मदद नही करते? "घर के काम तो इसी को करने हैं, मैं तो पुरुष हूँ। मेरा काम पैसा कमाना है, न कि कपडे सुखाना या लंच पैक करना।" "क्यों? ये सब सिर्फ इसी का काम क्यों है? चलो मान लिया फिर नौकरी करना इसका काम क्यों है? ये दो जगह काम करे और दोनों जगह पूरे समर्पण के साथ और आप, आप की तो शान कम हो जाएगी ज़रा सी मदद कर देंगे, तो ठीक है। सुजाता आप भी छोड़ दो नौकरी इन्हे आपके पैसे की कोई मदद नही चाहिए। ठीक कह रही हूँ न मैं? आप एक दिन इसे खो देंगे वर्ना अपनी झूटी ईगो से बाहर आ जाइये। इलाज की जरूरत इसे नही आपको व आपके परिवार को है।" 

ना जाने उस डॉ. की बातों का असर था या सच में मुझे खो देने का डर, अगली सुबह चाय प्याली ले कर मेरे पति मुझे जगाते हुए बोले, "उठो स्कूल को देर हो जाएगी" और मैं डर कर बाहर देखने लगी की मम्मी देख लेंगी तो क्या कहेंगी? और ये हँस कर बोले कि मेने मम्मी को तुम्हारी प्रॉब्लम बताई तो मम्मी ने खुद मुझे कहा हे कि अगर मुझे तुमसे नौकरी करवानी है तो तुम्हारी मदद करूँ। और बस उस दिन से हम सब मिल कर घर में काम करते हैं।

   और मैं ,मैं ये सोच रही थी ईश्वर का लाख लाख धन्यवाद कि उसने सुजाता के परिवार के लोगों को मिलकर घर चलाने की बुद्धि प्रदान की नही तो मैं इतनी प्यारी सहेली से कभी न मिल पाती।


I am joining the Ariel #ShareTheLoad campaign at BlogAdda and blogging about the prejudice related to household chores being passed on to the next generation.

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