आज सुबह नींद खुलते ही कैलेंडर पर नज़र पड़ी ८ मार्च आज तो "इंटरनैशनल वीमेन'स डे" है। फ़ोन उठाया तो हर ग्रुप पर हैप्पी वीमेन'स डे के बड़े अच्छे मेसेजस थे। कहीं चेस की क्वीन, कहीं घर की धुरी, कहीं कुछ कहीं कुछ और मैं ये सोच रही थी कि क्या सिर्फ एक ही दिन सबको याद आता है कि महिलाये घर गृहस्थी को चलाती हैं? सारा साल क्या हम कुछ नही करते? लेकिन फिर यही सोचने लगी कि चलो एक दिन तो भाव मिल रहा हैं, एन्जॉय कर लो।
आज मुझे कुछ मैसेज बहुत अच्छे लगे जिन्हे मै यहां शेयर करना चाहती हूँ नही जानती किसने रचा इनको बस मन को भा गये।
आज मुझे कुछ मैसेज बहुत अच्छे लगे जिन्हे मै यहां शेयर करना चाहती हूँ नही जानती किसने रचा इनको बस मन को भा गये।
मैं क्या हूँ, ये सोचती खुद में डूबी हुई हूँ
मैं हूँ क्या????
कोई डूबते सूरज की किरण
या आईने में बेबस सी कोई चुप्पी
या माँ की आँखों का कोई आँसू
या बाप के माथे की चिंता की लकीर
बस इस दुनिया के समुन्दर में
कांपती हुई सी कोई कश्ती
जो हादसों की धरती पर
खुद की पहचान बनाते बनाते
एक दिन यूँ ही खत्म हो जाती है
चाहें हो पंख मेरे उड़ने के कितने
फिर भी क्यों
कई जगह खुद को बेबस पाती हूँ ?
शायद ये कवियत्री भी मेरी तरह एक दिन के सम्मान पर हैरान है।
तन चंचला
मन निर्मला
व्यवहार कुशल
भाषा कोमला
सदैव समर्पिता।
नदिया सा चलना
सागर से मिलना
खुद को भुला कर भी
अपना अस्तित्व सम्हालना
रोशन अस्मिता।
सृष्टि की जननी
प्रेम रूप धरिणी
शक्ति सहारिणी
सबल कार्यकारिणी
अन्नपूर्णा अर्पिता।
मूरत ममता
प्रचंड क्षमता
प्रमारित विधायक
सौजन्य विनायक
अखंड सहनशीलता।
आज का युग तेरा है परिणता
नारी तुझ पर संसार गर्विता।
ऐसे बहुत से विचार आज पढ़ने को मिले जो दिल को छू गए। सभी रचियताओं की अद्वितीय रचनाऍ हैं जिनसे कभी अपनी बेबसी और कभी अपने महिला होने पर गर्व महसूस हुआ। ऐसे रचनाकारों को मेरा नमन।
SUNDAR...
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