आज सुबह से ही तबियत कुछ ढीली सी लग रही थी। क्लास मे भी खड़े रह कर पढ़ाना और फिर एग्जाम का प्रेशर बच्चों को बार बार प्रैक्टिस टेस्ट देना, लग रहा था कि शरीर में अब और ताकत नही बची कि घर जाकर कुछ कर पाऊँगी। जैसे तैसे स्कूल में छुट्टी की घंटी बजी और मैं घर जाने की जल्दी में निकली।
बाहर निकलते ही रिक्शा मिला शुक्र मनाया नही तो कई बार तो रिक्शा के इंतजार में ही दस पंद्रह मिनट लग जाते हैं। रिक्शा पर बैठते ही घर की वस्तु स्थिति सामने घूमने लगी मेरे स्कूल चले जाने के बाद पतिदेव ने नहा कर तौलिया वहीं छोड़ दिया होगा। किचेन अंदर घुसते ही मुंह चिढ़ाती सी प्रतीत होती है जैसे वो भी इसी इंतजार मैं बैठी होकि अभी मैडम आएँगी तो मुझेभी साफ सफाई करके मेरी रौनक वापिस लायेंगी। और उधर मैले कपडे जिन्हे सुबह जल्दबाज़ी में छोड़ आई थी की दिन में आ कर देखूंगी आँखों के अँधेरा छा रहा था। चलो पहले घर तो पहुँच जाऊँ फिर देखी जाएगी क्या करूंगी। "मैडम किधर जाना है"आवाज़ से तन्द्रा भंग हुई। "सीधे हाथ मोड़ कर रोक देना भैया, धन्यवाद"।
पर्स में से चाबी निकलने लगी तो याद आया आज तो बेटा घर पर है कल ही तो आया है बनारस से, वो हॉस्टल में रहता है कभी कभार लॉन्ग वीकेंड हो तो आ जाता है। घंटी बजते ही बेटे ने दरवाजा खोला उसका मुस्कुराता चेहरा देख कर आधी थकान तो वैसे ही उतर गयी। "उठ गया बेटा? कुछ खाया तूने? मैं जल्दी से कुछ बना देती हूँ अभी", पर्स रखते हुए बोली। मेरी आँखों को खुद पर यकीं नही आ रहा हो जैसे ऐसे खुली की खुली रह गयी। कमरा एकदम साफ, बिस्तर करीने से लगा हुआ, शीट्स तह कर के रखी हुई। "ये क्या आज तूने बिस्तर सम्हाले?" "हाँ जी, क्यों?" बेटे ने बड़ी हैरानी से पूछा। मैं हैरान सी आँखों से उसे देख रही थी बाहर देखा तो कपडे सूख रहे थे अब तो मुझे लगा सपना देख रही हूँ।
मुझे यकीं नही हो रहा था क्योंकि मेने तो बेटे को कभी काम करते नही देखा था और हमारे घर के रिवाजों के हिसाब से लड़के काम नही करते। कभी आधी रात में पानी भी चाहिए हो आवाज़ लगा कर मांगने वाला बच्चा आज माँ के सारे काम कर दे, ये तो बिलकुल ही अप्रत्याशित सा था। मैं कुछ कहती इससे पहले वही बोला "मम्मी, आप इतनी हैरान क्यों हो रही हो? अब मैने हॉस्टल में जाने के बाद इस चीज़ को समझा कि आप हमारे सारे काम कितनी सहजता से कर लेती। आप तो कभी ये भी नही कहते कि मैं थकी हूँ मैं नही करुँगी। पर मै जब क्लास से वापिस रूम पर आता था तो फैला बिस्तर, कपडे सब सम्हालने की हिम्मत भी नही होती थी। फिर मेने फैसला किया की सुबह ही सब ठीक कर लिया करूँगा।"
" मुझे आपकी बहुत याद आती थी। साथ ही मन में ये बात भी कि मम्मी ने क्यों नही हमसे कभी काम करने को कहा अकेली ही सब कुछ करती रहीं। आपने मुझे पापा को क्यों नही कहा कि आप भी थक जाते हो हमें भी आपका हाथ बंटाना चाहिये। अब वक़्त बदल चुका है माँ जब आप हमारे लिए बाहर जाकर काम कर सकते हो तो हमे भी तो घर के कामों में आपकी हेल्प करनी चाहिए। अबसे हम सब मिल कर घर के और बाहर के सब काम करेंगे घर के काम सिर्फ आपकी जिम्मेदारी नही है माँ।"
और मैं, मैं तो जैसे आकाश में उड़ रही थी। जिंदगी भर तो यही सुनती रही जितना मर्जी पढ़ ले घर के काम तो तुझे करने ही पड़ेंगे मर्द थोड़ी घर का काम करते अच्छे लगते हैं। और आज मेरा बेटा मुझे ये एहसास करवा रहा है कि जब वर्क प्लेस पर हम सब एक समान हैं तो घर में क्यों नही। आसमान की तरफ देखते हुए बुदबुदा रही थी ईश्वर तेरे भी खेल न्यारे हैं कब क्या कर दे कुछ पता नही।
I am joining the Ariel #ShareTheLoad campaign at BlogAdda and blogging about the prejudice related to household chores being passed on to the next generation.
No comments:
Post a Comment