Thursday, 28 April 2022

Bas yu hi

Aaj fir Se apna blog  start karne ka mn hua socha dekhi Kahin bhul to nhi gyi apna blog address aur kya
Sab kuchh vhin tha bas main hi rasta bhul gyi thi  

Friday, 22 April 2016

Punjabiyan di mashhoor Karamb (Ganth Gobhi): Recipe


आज उम्र के इस मोड़ पर खड़े हो कर पीछे देखती हूँ तो न जाने क्या क्या याद आता है कभी वो वीर का पेड़ की ऊपर की टहनियों पर चढ़ कर मीठे पके आम तोड़ कर चिढ़ाना कभी गुड़िया गुड्डे की शादी का खेल और ,कभी स्कूल से आते ही घर में कढम्ब यानी गांठ गोभी की वो खुशबु मन को गुदगुदा जाती है।

  उस दिन  बाजार सब्जी लेने गयी तो वो साथ नही थे गांठ गोभी देखते ही मन किया की एक बार बना कर खिलाऊँगी नही पसंद आई तो कोई बात नही। सो ले आई  मनपसंद सब्जी और बना भी डाली की ट्राई करने में क्या हे ज्यादा से ज्यादा नही खाएंगे। शाम को डरते डरते पापा और इनके सामने परोसी क्या हे ये पूछने पर मेने कहा पापा खा कर बताइये कैसी है तब नाम बताऊँगी। यकीं मानिये पापा ने कहा बेटा ये तो बहुत स्वाद है बिलकुल नॉनवेज सा टेस्ट है। तब मेने उन्हें नाम बताया। अब अक्सर पापा और ये कहते है कि वो अपना वाला नॉनवेज बना देना अच्छा बना लेती हो। आप भी बना कर देखिये कि ये वेजिटेरिअन नॉनवेज आपको केसा लगता  है। 

सामग्री :-गांठ गोभी १/२ किलो
             तीन बड़े प्याज
              १० १२ लहसुन की कली
              १ इंच अदरक का टुकड़ा
              ४-५ टमाटर बड़े साइज के
              जीरा , नमक ,लाल मिर्च ,हल्दी,सूखा  धनिया (पिसा),सूखी मेथी (पिसी) स्वादानुसार
              सरसों का तेल २ बड़े चम्मच


विधि :-  सबसे पहले गोभी को पत्तों से अलग करके छील लें और छोटे छोटे टुकड़ो में काट लें। 

पत्तों में से साफ़ पत्ते निकाल कर उन्हें भी बारीक़ काट लें। साफ पानी में २ बार धो लें।


कुकर में सरसों का तेल गर्म होने दें तब तक प्याज को बारीक पीस लें  ,लहसुन और अदरक का पेस्ट बना लें। 

 


तेल के अच्छी तरह गर्म हो जाने पर उसमे जीरा तड़कने दें फिर लहसुन अदरक का पेस्ट डाल  कर थोड़ा भूने अब इसमें प्याज डाल कर लाल होने तक भूने। 

सबसे पहले थोड़ी  सी पिसी लाल मिर्च डालें हिला कर इसमें टमाटर प्यूरी डाल कर भूने फिर सारे मसाले डाल कर भूनें जब तक मसाला तेल ना छोड़ दे। 



मसाले में कटी गोभी व पत्ते डाल कर १५ से २० मिनट तक भूने फिर उसमें पानी डाल कर १० १५ मिनट प्रेशर में रखे रहने दें। 


सब्जी के गलने तक पकाना है फिर गरम मसाला व हरे धनिये के पत्ते धोकर बारीक़ काट कर ऊपर से डालें। 


लीजिये लज़ीज़ सब्जी तैयार है चावल के साथ गर्म गर्म परोसें और वाहवाही बटोर लें।

Thursday, 21 April 2016

दिल्ली का ऑड-इवन..!


सुबह सुबह डोरबेल बजते ही दिमाग दौड़ना शुरू कर देता है कि इस समय कौन आया होगा, स्कूल जाने का समय बिल्कुल बस निकलने ही लगी थी। "सुनो, जल्दी करो। मुझे देर हो रही है, आप आ कर अपना बैग सेट करना। पहले मुझे छोड़ दो।" "इस समय कौन होगा," बोलते हुए दरवाजा खोला तो देखा सामने मिसेज शर्मा खड़ी थी। हाथ में पर्स लिए, मुस्कुरा कर बोलीं, "मिसेज खन्ना, आप निकल रही है? मुझे कोई सवारी नहीं मिल रही। ऑड इवन के चक़्कर मे आज ये गाड़ी नहीं चला सकते। प्लीज, क्या मैं आपके साथ चल सकती हूँ?" "हाँ हाँ! क्यों नहीं! में भी बस निकल ही रही हूँ।" थैंक्स कह कर मिसेज शर्मा जल्दी से बैठ गई और हम स्कूल की तरफ चल पड़े।

       रास्ते में मैं यही सोचती रही कि जब पिछली बार ऑड इवन स्कीम आई थी तो मैंने कोशिश की थी कि हमारे ब्लॉक की चार लोग एक ही तरफ जाते है और सबकी गाड़ियाँ सेम टाइम होने के कारण आगे पीछे ही चलती है तो हम सब क्यों न एक साथ बारी बारी से एक ही कार में चलें। यही सोच कर मैं सबसे पहले मिसेज शर्मा के पास बात करने गयी थी क्योंकि बाकी दोनों उन्ही के स्कूल की थी तो बात बन सकती है। पर मिसेज शर्मा का जवाब बड़ा अजीब सा था - "सुबह सुबह कोर्डिनेट करना बड़ा मुश्किल है और दूसरों के लिए रुक कर वेट करो मेरे हस्बैंड ये सब लाइक नहीं करते ,वैसे भी हमारे पास तो ऑड इवन दोनों नंबर की कार है। मुझे तो कोई दिक्कत नहीं है। आप उन दोनों से बात कर लीजिए।" मैने भी सोचा - छोडो, मुझे क्या पड़ी है।

       "कल आप मेरे साथ चल लीजिएगा कल तो ओड नंबर कार चलेगी तो हस्बैंड छोड़ देंगे।" "नहीं नहीं कोई बात नहीं आप परेशान न हो मुझे तो ये छोड़ ही देते है, बेटे की गाड़ी का नंबर ऑड है।" "नहीं वो बात नहीं असल में हमने अपनी इवन नंबर वाली कार बेच दी, पुरानी हो गई थी। हमे क्या पता था की दिल्ली मे फिर से ये स्कीम लागू हो जाएगी। मुझे तो परसो फिर शामे दिक्कत का सामना करना पड़ेगा, इसीलिए कह रही हूँ की पूलिंग कर लेते हैं मैं उन दोनों से भी बात कर लूँगी।" "देख लीजिए, आपकी मर्जी।", कह कर मेने बात खत्म कर दी। उनको उनके स्कूल के गेट पर उतार कर इन्होने मुझे स्कूल छोड़ दिया।

       मैं मन ही मन सीएम साहेब का शुक्रिया कर रही थी कि कम से कम ऑड इवन के बहाने ही सही लोगो मे इस बात की जागरूकता तो आई कि एक ही जगह एक ही समय आने जाने के लिए हम कार पूलिंग तो कर सकते हैं। इससे पेट्रोल की बचत, पोलुशन में कमी, सबसे बड़ा फायदा ये की पतिदेव को कुछ दिन तो छोडने लाने की ड्यूटी से आज़ादी मिल जाएगी। अब हम सब हर दिन एक कार में स्कूल जाती है। साथ जाने से बातचीत से पता चला कि अच्छे लोग हैं वो भी और तो और शाम को पार्क में सैर करने भी अब हम सब एकसाथ जाती हैं। एक कमी जो हमेशा लगती थी की मेरी कोई फ्रेंड नहीं है वो भी ख़त्म हो गई। 

शुक्रिया ईश्वर!

Thursday, 24 March 2016

होली स्पेशल : गुजिया की रेसिपी

होली का असली मजा तो तब ही आता है जब हमें माँ के हाथों की गुजिया  खाने को मिले। आपके बच्चे भी चाहते होंगे की आप उनके लिए गुजिया बनाएं। आइये हम मिल कर अपने बच्चों के लिए स्वादिष्ट गुजिया बनाएं।  



लीजिये गुजिया की रेसिपी पेश है।


सामग्री:-
आटा गूंथने के लिए
                  १ कटोरी मैदा
                   २ बड़े चममच सूजी
                  २ बड़े चम्मच चीनी पानी में घोल लें
                   २-३ बड़े चम्मच रिफाइंड मोयन के लिए
                   भरावन के लिए
                  २ बड़े चम्मच सूजी
                  २५० ग्राम मावा
                ,  बूरा चीनी स्वादानुसार
                  नारियल का बुरा ,किशमिश ,चारमगज काजू आदि आवशयकता अनुसार
                  तलने के लिए रिफाइंड
                 गुझिया बनाने का साँचा

विधि;-
बर्तन में मैदा सूजी व मोयन दाल कर मिक्स कर लें। इस आटे की मुठ्ठी बननी चाहिए इसका मतलब की मोयन ठीक डली है फिर इसको चीनी के पानी से कड़ा गूँथ लें और सूती गीले कपडे से कपडे से ढक कर रख दें।



अब कढ़ाई मे बिना घी डाले सूजी डाल कर धीमी आंच पर भून लें और बर्तन में निकाल ले। अब उसी कढ़ाई में मावा डाल कर भूनें गुलाबी होने पर गैस बंद कर दें। एक थाली में भूनी सूजी, भुना मावा, सूखे मेवे व बूरा चीनी मिक्स कर लें।



एक कटोरी में एक चम्मच मैदा दाल कर पतला सा घोल बना लें। 

आटे की छोटी छोटी लोइयाँ बना कर गीले कपडे के नीचे ही रखे। लोई से जितनी पतली रोटी बिल सकती है बेलें फिर रोटी को गुझिया के सांचे पर कर कार्नर पर मैदे का घोल दोनों तरफ लगा कर बीच में सूखा  मिक्सचर भर लें सांचे को बंद करें  बाहर रह गया मैदा हटा दे। तैयार गुझिया को तलने से  पहले  कपडे के नीचे रखें नही तो वो सुख कर फट सकती हैं इससे सारा घी खराब हो सकता है।



दूसरी कढ़ाई में रिफाइंड गर्म करे व बनी हुई गुझिया फ्राई करने के लिए इसमें डालें व धीमी आंच पर तलें। थोड़ी सी ब्राउन कलर होने पर टिशू पेपर पर निकल लें ताकि वो एक्स्ट्रा घी सोख ले। लीजिये तैयार  हो गयी हमारी लज़ीज़ और क्रिस्पी गुझिया। 



इस होली बच्चों को  बनाई गुझिया से सरप्राइज कर दीजिये।

Thursday, 17 March 2016

बचपन के रंग

आजकल होली की धूम मची हुई है। गुझिया, चिप्स और मिठाइयाँ सबकी तैयारियाँ शुरू हो गयी हैं। बहू आज ही सुबह कह रही थी  माँ बाजार में सब मिल जाता है फिर आप इतनी मेहनत क्यों करते हो? कैसे बताऊँ उसको की पहले तो कई दिनों पहले से घर में उत्सव जैसा लगने लगता था, साँझा परिवार होने की वजह से हर काम लार्ज स्केल पर होता था। चिप्स बनते तो सारी छत पर चादरें बिछा कर चिप्स सूखने डालना, माँ का हुक्म होता था सभी चिप्स अच्छी तरह से फैलाना। निगरानी रखना की चिड़िया चोंच न मार जाये, चुन्नी से ढक देना मिट्टी न पड़ जाए। आजकल तो थोड़ा सा बस शगुन करने जितना ही सामान बनाया जाता है। 

खैर मुझे तो होली का नाम आते ही बचपन की वो ढेर सारी घटनाएँ ऐसे याद आ जाती हैं मनो कल ही की तो बात है। उस बार भैया की बोर्ड की परीक्षाएं थीं, माँ पिताजी का सख्त हुक्म था कोई होली वोली नही होगी। उसका ध्यान भी भंग होगा, कंसंट्रेट नही कर पायेगा। अच्छे नंबर लाने है उसे। "पर।", "कोई पर वर नही, कह दिया न"।और हम सब छोटे बच्चे डर के मारे एक कोने में छुप कर खुसर फुसर करने लगे। "ये भी कोई बात हुई, जैसे और किसी के पेपर नही होते। पता नही बड़े भैया ऐसे कौन से महान पेपर देने वाले है।" हम सबको यही लगने लगा था की माँ का तो पहले ही लगता था पिताजी भी बड़े भैया को हम सबसे ज्यादा प्यार करते है। इस बार की होली सूखी  ही जाने वाली है। बस इतना सा रिएक्शन था बच्चों का........

सुबह सुबह पापा ने थोड़ा सा टीका कर होली का शगुन किया । होली मुबारक कह कर हम सबके माथे पर होली का टीका लगाया। और अपने कमरे में चले गए। और तभी दरवाजे पर बेल बजी, खोला तो छोटी बुआ रंगो के थैले हाथ में ले कर, मिठाई की टोकरी के साथ घर में घुसीं। "क्या त्यौहार के दिन भी दरवाजे बंद कर रखे है? बच्चे कहाँ हे सारे? कर्फ्यू क्यों लगा रखा हे घर में ???" "बुआ वो पिताजी ने होली खेलने से मना किया है, भैया के बोर्ड्स है न।""अरे हटो! पूरा साल इस त्यौहार का इन्तज़ार करते हैं", कहते कहते बुआ बाथरूम में घुस गयी। पानी की बाल्टी उठाई और जा पहुंची भैया के कमरे में, "विमल बाहर आता है या यही से बाल्टी से होली खेलनी है?" और हम सब बच्चे डर के मारे पिताजी के कमरे की तरफ देख रहे थे की अभी पिताजी बाहर आएंगे और बम  फूटेंगे। "सुन रहा है तू या मैं अंदर आ जाऊँ?" "बुआ वो पिताजी..." और तब तक बुआ जी ने भैया को बाहर खींचा और रंग के पानी से सरोबार कर दिया। हम सब ख़ुशी के मारे चिल्लाने लगे और एक दूसरे को रंग मलने लगे। शोर सुन कर पिताजी गुस्से में कमरे से बाहर आये। बुआजी ने पीछे से गुलाल उनके ऊपर पलट दिया। बुरा न मानो होली है। सबकी हिम्मत बड़ गयी, कोई बुआ की आड़ लेकर गुलाल उड़ा रहा था, कोई मग से ही पानी दूसरे पर डाल रहा था।

"क्या भैया, ये क्या? पूरा साल पढाई की है। विमल के १ -२ घंटे होली खेलने से उसके नम्बर कम नही होंगे। सब बच्चों का मुँह देखो कैसे खिल गया है। विमल भी देखो कितना एन्जॉय कर रहा है। आपको क्या लगता है जब उसके सारे फ्रेंड्स होली खेल रहे है तो उसका मन पढाई में लगेगा?" "जा बेटा, थोड़ी देर बाहर खेल लो।"

वो तो बाद में पता चला कि माँ ने बुआ को होली पर लगे कर्फ्यू के बारे में बताया था और हमारे उतरे चेहरों के बारे में भी। वो जानती थी की सिर्फ बुआ ही हमे इस कर्फ्यू से रिलीज़ करवा सकती थी। उन्ही की बदौलत हमारी सुखी, खुश्क, बेमजा होली सबसे ज्यादा रंगीन, गीली और खुशगवार होली में बदल गयी। "थैंक्यू बुआ" कह कर हम सब बुआ से लिपट गए। मन ही मन सोच रहे थे की हमने अपने मन में बेकार ही ये सोच बना ली थी की माँ भैया को ज्यादा प्यार करती है, माँ के लिए तो सभी बच्चे बराबर और सबके लिए उसका प्यार बराबर। 

"थैंक्यू माँ" अनायास ही मेरे मुँह से निकला। "क्या?" पति के इस प्रश्न पर मै वर्तमान में आ गयी। कुछ नही कह कर मुस्कुरा दी।


I’m pledging to #KhulKeKheloHoli this year by sharing my Holi memories atBlogAdda in association with Parachute Advansed.


Tuesday, 8 March 2016

HAPPY WOMEN'S DAY

आज सुबह नींद खुलते ही कैलेंडर पर नज़र पड़ी ८ मार्च आज तो "इंटरनैशनल वीमेन'स डे" है। फ़ोन उठाया तो हर ग्रुप पर हैप्पी वीमेन'स डे के बड़े अच्छे मेसेजस थे। कहीं चेस की क्वीन, कहीं घर की धुरी, कहीं कुछ कहीं कुछ और मैं ये सोच रही थी कि क्या सिर्फ एक ही दिन सबको याद आता है कि महिलाये घर गृहस्थी को चलाती हैं? सारा साल क्या हम कुछ नही करते? लेकिन फिर यही सोचने लगी कि चलो एक दिन तो भाव मिल रहा हैं, एन्जॉय कर लो।
आज मुझे कुछ मैसेज बहुत अच्छे लगे जिन्हे मै यहां शेयर करना चाहती हूँ नही जानती किसने रचा इनको बस मन को भा गये।

    मैं क्या हूँ, ये सोचती खुद में डूबी हुई हूँ
    मैं हूँ क्या????
    कोई डूबते सूरज की किरण
    या आईने में बेबस सी कोई चुप्पी
    या माँ की आँखों का कोई आँसू
   या बाप के माथे की चिंता की लकीर
    बस इस दुनिया के समुन्दर में
   कांपती हुई सी कोई कश्ती
    जो हादसों की धरती पर
   खुद की पहचान बनाते बनाते
   एक दिन यूँ ही खत्म हो जाती है
   चाहें हो पंख मेरे उड़ने के कितने
   फिर भी क्यों
   कई जगह खुद को बेबस पाती हूँ ?
   शायद ये कवियत्री भी मेरी तरह एक दिन के सम्मान पर हैरान है।
   तन चंचला
    मन निर्मला
    व्यवहार कुशल
    भाषा कोमला
    सदैव समर्पिता।

    नदिया सा चलना
     सागर से मिलना
    खुद को भुला कर भी
    अपना अस्तित्व सम्हालना
     रोशन अस्मिता।
     सृष्टि की जननी
     प्रेम रूप धरिणी
     शक्ति सहारिणी
    सबल कार्यकारिणी
    अन्नपूर्णा अर्पिता।

    मूरत ममता
    प्रचंड क्षमता
    प्रमारित विधायक
   सौजन्य विनायक
   अखंड सहनशीलता।

   आज का युग तेरा है परिणता
   नारी तुझ पर संसार गर्विता।

ऐसे बहुत से विचार आज पढ़ने को मिले जो दिल को छू गए। सभी रचियताओं की अद्वितीय रचनाऍ हैं जिनसे कभी अपनी बेबसी और कभी अपने महिला होने पर गर्व महसूस हुआ। ऐसे रचनाकारों को मेरा नमन।   

Wednesday, 2 March 2016

सुजाता की कहानी

आज 'नो एग्जामिनेशन डे' था - बच्चे तो थे नहीं, सो हम सब स्टाफ रूम में बैठे इधर उधर की गप्पें मार रहे थे। बातें बजट से शुरू हुई कि बजट मे क्या अच्छा लगा और क्या पसंद नही आया। फिर टीवी, बॉलीवुड से होती हुई और परिवार पर जा पहुँची। "मैडम आप इतनी सुबह क्यों उठ जाते हो" इधर से एक ने पूछा, जब तक वो जवाब देतीं तब तक दूसरी मैडम बोल उठी "बेचारी सारा काम खुद जो करती हैं।" "मतलब?", हैरानी से पूछा सुजाता ने जो अभी अभी स्टाफ रूम में दाखिल हुई थी। "अरे इनकी किस्मत तुम्हारे जैसी थोड़ी है जो घर के कामों में कोई हाथ बंटा दे ,घर के सारे काम ये खुद करती हैं।" "वो तो सभी करते हैं, इसमें क्या बड़ी बात है?" इन सारी बातों के बीच सुजाता ने कहा कि "आपको क्या लगता है कि मेरे लिए ये सब इतना आसान रहा होगा कि पुराने विचारों वाले परिवार में अपनी जगह बनाना और पति से काम में मदद करवा लेना वो भी संयुक्त परिवार में, फिर ??"

सुजाता ने जो आप बीती सुनाई वो मैं आप सबको उसी की जुबानी सुना रही हूँ।

        "जब  मेरी सगाई इनसे हुई तो मै बहुत खुश थी। सुन्दर, स्मार्ट, अच्छी नौकरी, अच्छी तनख्वाह, छोटा सा परिवार, पढ़े लिखे सास ससुर और क्या चाहिए किसी को भी। बस मेरे सपने हकीकत में बदल रहे थे। शुरू शुरू में तो सब कुछ बहुत बढ़िया था, लेकिन उस दिन मेरे पैरों के नीचे से जमीं ही खिसकगयी जब सासु माँ ने कहा कि "बेटा थोड़ा घर का भी ध्यान देना शुरू करो। तुम्हारी छुट्टियाँ भी ख़त्म होने को हैं, हम भी कब तक तुम्हारा ध्यान रख सकते हैं। अपना काम खुद करना शुरू करो।" "हाँ जी" कह कर मै अपने कमरे में आ गयी।

         जब मेरे स्कूल शुरू हुये तो मेरी मुश्किलें शुरू हो गयी। सुबह कपडे धो कर फैलाने का टाइम नहीं, खाना बन गया तो पैक नही कर पायी। कभी हस्बैंड से कहा की प्लीज हेल्प कर दिया करो तो उनका कहना कि "मम्मी पापा क्या कहेंगे कि बीवी की मदद कर रहा हूँ।" "तो?" वो बिना कोई जवाब दिए निकल जाते। मै उसी तरह अनाड़ी की तरह एक काम सही करती तो दूसरा बिगाड़ देती। सब कुछ बदल रहा था, घर का माहौल भी रिश्ते भी। मैं कुछ नही कर पा रही थी। एकाध बार माँ से जिक्र किया तो माँ ने भी यही जवाब दिया कि घर का काम तो औरत को ही करना होता है।

      सब के बीच मै कहीं टूट रही थी घर मुझसे सम्हाल नही रहा था। स्कूल का काम टाइम से पूरा नही हो रहा था और मै डिप्रेशंन में आती जा रही थी। डॉ. से मिलकर प्रॉब्लम डिसकस की तो डॉ ने इनसे पूछा क्या घर में सब ठीक है? "हम्म ठीक ही है, बस मैडम ही अपसेट हैं।" "सुजाता मुझे बताओ कि तुम्हें क्या परेशानी है?" "कुछ नही। जब मैं सब ठीक करने की कोशिश करती हूँ तो बाकी सब गड़बड़ हो जाता है। मै कुछ भी सही नही कर पाती।"

   डॉ. ने मेरे पति से कहा की जब ये काम करने में घबरा जाती है तो आप क्या मदद नही करते? "घर के काम तो इसी को करने हैं, मैं तो पुरुष हूँ। मेरा काम पैसा कमाना है, न कि कपडे सुखाना या लंच पैक करना।" "क्यों? ये सब सिर्फ इसी का काम क्यों है? चलो मान लिया फिर नौकरी करना इसका काम क्यों है? ये दो जगह काम करे और दोनों जगह पूरे समर्पण के साथ और आप, आप की तो शान कम हो जाएगी ज़रा सी मदद कर देंगे, तो ठीक है। सुजाता आप भी छोड़ दो नौकरी इन्हे आपके पैसे की कोई मदद नही चाहिए। ठीक कह रही हूँ न मैं? आप एक दिन इसे खो देंगे वर्ना अपनी झूटी ईगो से बाहर आ जाइये। इलाज की जरूरत इसे नही आपको व आपके परिवार को है।" 

ना जाने उस डॉ. की बातों का असर था या सच में मुझे खो देने का डर, अगली सुबह चाय प्याली ले कर मेरे पति मुझे जगाते हुए बोले, "उठो स्कूल को देर हो जाएगी" और मैं डर कर बाहर देखने लगी की मम्मी देख लेंगी तो क्या कहेंगी? और ये हँस कर बोले कि मेने मम्मी को तुम्हारी प्रॉब्लम बताई तो मम्मी ने खुद मुझे कहा हे कि अगर मुझे तुमसे नौकरी करवानी है तो तुम्हारी मदद करूँ। और बस उस दिन से हम सब मिल कर घर में काम करते हैं।

   और मैं ,मैं ये सोच रही थी ईश्वर का लाख लाख धन्यवाद कि उसने सुजाता के परिवार के लोगों को मिलकर घर चलाने की बुद्धि प्रदान की नही तो मैं इतनी प्यारी सहेली से कभी न मिल पाती।


I am joining the Ariel #ShareTheLoad campaign at BlogAdda and blogging about the prejudice related to household chores being passed on to the next generation.